Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पंचम शतक : उद्देशक-६]
[४७१ धनुष चलाने वाले व्यक्ति को तथा धनुष से सम्बन्धित जीवों को उनसे लगने वाली क्रियाएँ
१०. [१] पुरिसे णं भंते! धणुं परामुसित्ता, धणुं परामुसति उसुं परमुसति, उसुं परामुसित्ता ठाणं ठाति, ठाणं ठिच्चा आयतकण्णाययं उसुं करेति, आययकण्णाययं उसुं करेत्ता उड्ढं वेहासं उसुं उव्विहति, २ ततो णं से उसुं उड्ढं वेहासं उव्विहिए समाणे जाई तत्थ पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताई अभिहणति वत्तेति लेस्सेति संघाएति संघठेति परितावेति किलामेति, ठाणाओ ठाणं संकामेति, जीवितातो ववरोवेति, तए णं भंते! से पुरिसे कतिकिरिए ?
गोयमा! जावं च णं से पुरिसे धणुं पुरामुसति जाव उव्विहति तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पाणातिवातकिरियाए, पंचहिं किरियाहिं पुढें।
[१०-१ प्र.] भगवन्! कोई पुरुष धनुष को स्पर्श करता है, धनुष का स्पर्श करके वह बाण का स्पर्श (ग्रहण) करता है, बाण का स्पर्श करके (धनुष से बाण फैंकने के) स्थान पर से आसनपूर्वक बैठता है, उस स्थिति में बैठकर फैंके जाने वाले बाण को कान तक आयत करे-खींचे, खींच कर ऊँचे आकाश में बाण फेंकता है। ऊँचे आकाश में फैंका हुआ वह बाण, वहाँ आकाश में जिन प्राण, भूत, जीव
और सत्त्व को सामने आते हुए मारे (हनन करे) उन्हें सिकोड़ दे, अथवा उन्हें ढक दे, उन्हें परस्पर श्लिष्ट कर (चिपका) दे, उन्हें परस्पर संहत (संघात-एकत्रित) करे, उनका संघट्टा-जोर से स्पर्श करे, उनको परिताप-संताप (पीड़ा) दे, उन्हें क्लान्त करे-थकाए, हैरान करे, एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकाए, एवं उन्हें जीवन से रहित कर दे, तो हे भगवन् ! उस पुरुष को कितनी क्रियाएँ लगती हैं ?
[१०-१ उ.] गौतम! यावत् वह पुरुष धनुष को ग्रहण करता यावत् बाण को फेंकता है, यावत् वह पुरुष कायिकी, आधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, परितापनिकी और प्राणातिपातिकी, इन पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होता है।
[२] जेसिं पियणं जीवाणं सरीरेहिंतो धणू निव्वत्तिए ते वियणं जीवा काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुढें।
[१०-२] जिन जीवों के शरीरों से वह धनुष बना (निष्पन्न हुआ) है, वे जीव भी पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं।
११. एवं धणुपुढे पंचहिं किरियाहिं। जीवा पंचहिं। ण्हारू पंचहिं। उसू पंचहिं। सरे पत्तणे फले हारू पंचहिं।
__ [११] इसी प्रकार धनुष की पीठ भी पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होती है। जीवा (डोरी) पांच क्रियाओं से, हारू (स्नायु) पांच क्रियाओं से एवं बाण पांच क्रियाओं से तथा शर, पत्र, फल और ण्हारू भी पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं।
१२. अहे णं से उसू अप्पणो गरुयत्ताए भारियत्ताए गुरुसंभारियत्ताए अहे वीससाए