Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
आरम्भ - परिग्रह से मुक्त होते हैं, किन्तु यहाँ समग्र मनुष्यजाति की अपेक्षा से मनुष्य को सारम्भसपरिग्रह बताया गया है।
विविध अपेक्षाओं से पांच हेतु अहेतुओं का निरूपण
३७. पंच हेतू पण्णत्ता, तं जहा— हेतुं जाणति, हेतुं पासति, हेतुं, बुज्झति, हेतु अभिसमागच्छति, हेतुं छउमत्थमरणं मरति ।
[३७] पांच हेतु कहे गए हैं, वे इस प्रकार हैं- (१) हेतु को जानता है, (२) हेतु को देखता (सामान्यरूप से जानता है, (३) हेतु का बोध प्राप्त करता — तात्त्विक श्रद्धान करता है, (४) हेतु का अभिसमागम अभिमुख होकर सम्यक् रूप से प्राप्त करता है, और (५) हेतुयुक्त छद्मस्थमरणपूर्वक मरता है।
३८. पंच हेतू पण्णत्ता, तं जहा— हेतुणा जाणति जाव हेतुणा छउमत्थमरणं मरति । [३८] पांच हेतु (प्रकारान्तर से ) कहे गए हैं। वे इस प्रकार - (१) हेतु (अनुमान) द्वारा (अनुमेय को) सम्यक् जानता है, (२) हेतु (अनुमान) से देखता (सामान्य ज्ञान करता है, (३) हेतु द्वारा (वस्तु-तत्त्व को सम्यक् जानकर ) श्रद्धा करता है, (४) हेतु द्वारा सम्यक्तया प्राप्त करता है, और (५) हेतु (अध्यवसायादि) छद्मस्थमरण मरता है।
३९. पंच हेतू पण्णत्ता, तं जहा— हेतुं न जाणइ जाव हेतुं अण्णाणमरणं मरति ।
[३९] पांच हेतु (मिथ्यादृष्टि की अपेक्षा से) कहे गए हैं । यथा— (१) हेतु को नहीं जानता, (२) हेतु को नहीं देखता, (३) हेतु की बोधप्राप्ति (श्रद्धा) नहीं करता, (४) हेतु को प्राप्त नहीं करता, और (५) हेतुयुक्त अज्ञानमरण मरता है।
४०. पंच हेतू पण्णत्ता, तं जहा— हेतुणा ण जाणति जाव हेतुणा अण्णाणमरणं मरति । [४०] पांच हेतु कहे गए हैं। यथा— (१) हेतु से नहीं जानता, यावत् (५) हेतु से अज्ञान - मरण
मरता है।
४१.
, पंच अहेऊ पण्णत्ता, तं जहा अहेउं जाणइ जाव अहेउं केवलिमरणं मरति । [४१] पांच अहेतु कहे गए हैं— (१) अहेतु को जानता है; यावत् (५) अहेतुयुक्त केवलिमरण
मरता है।
४२. पंच अहेऊ पण्णत्ता, तं जहा [४२] पांच अहेतु कहे गए हैं —— (१)
अहेउणा जाणइ जाव अहेउणा केवलिमरणं मरइ । अहेतु द्वारा जानता है, यावत् (५) अहेतु द्वारा केवलिमरण
मरता है।
४३. पंच अहेऊ पण्णत्ता, तं जहा— अहेडं न जाणइ जाव अहेउं छउमत्थमरणं मरइ । [४३] पांच अहेतु कहे गए हैं— (१) अहेतु को नहीं जानता, यावत् (५) अहेतुयुक्त छद्मस्थ
१. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक २३८
(ख) वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ - टिप्पणयुक्त) भा. १, २१७ से २१८ तक