________________
४९४]
[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [३३-२] इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के विषय में कहना चाहिए। ३४. पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते!
तं चेव जाव कम्मा परिग्गहिया भवंति, टंका कूडा सेला सिहरी पब्भारा परिग्गहिया भवंति, जल-थल-बिल-गुह-लेणा परिग्गहिया भवंति, उज्झर-निज्झर-चिल्लल-पल्ललवप्पिणा परिग्गहिया भवंति, अगड-तडाग-दह-नदीओ वावि-पुक्खरिणी-दीहिया गुंजालिया सरा सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलतियाओ परिग्गहियाओ भवंति, आराम-उज्जाणा काणणावणाईवणसंडाइंवणताईओ परिग्गहियाओ भवंति, देवउल-सभा-पवा-थूमा खातियपरिखाओ परिग्गहियाओ भवंति, पागारऽट्टालग-चरिया-दार-गोपुरा परिग्गहिया भवंति, पासादघर-सरण-लेण-आवणा परिग्गहिया भवंति, सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-महापहा परिग्गहिया भवंति, सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि-सीय-संदमाणियाओ परिग्गहियाओ भवंति, लोही-लोहकडाह-कडुच्छुया परिग्गहिया भवंति, भवणा-परिग्गहिया भवंति, देव देवीओमणुस्सा चित्ताचित्त मणुस्सीओ तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणिणीओ आसण-=सयणखंभ-भंड-सचित्ताचित्त-मीसयाइं दव्वाइं परिग्गहियाई भवंति; से तेणटेणं०।
_ [३४ प्र.] भगवन् ! पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव क्या आरम्भ-परिग्रहयुक्त हैं, अथवा आरम्भपरिग्रहरहित हैं ?
[३४ उ.] गौतम! पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव, आरम्भ-परिग्रह-युक्त हैं, किन्तु आरम्भपरिग्रहरहित नहीं हैं; क्योंकि उन्होंने शरीर यावत् कर्म परिगृहीत किये हैं। तथा उनके टंक (पर्वत से विच्छिन्न टुकड़ा), कूट (शिखर अथवा उनके हाथी आदि को बांधने के स्थान), शैल (मुण्डपर्वत), शिखरी (चोटी वाले पर्वत), प्राग्भार (थोड़े से झुके पर्वत के प्रदेश) परिगृहीत (ममता-पूर्वक ग्रहण किये हुए) होते हैं। इसी प्रकार जल, स्थल, बिल, गुफा, लयन (पहाड़ खोद कर बनाए हुए पर्वतगृह) भी परिगृहीत होते हैं। उनके द्वारा उज्झर (पर्वततट से नीचे गिरने वाला जलप्रपात), निर्झर (पर्वत से बहने वाला जलस्रोत झरना),चिल्लल (कीचड़ मिला हुआ पानी या जलाशय), पल्लल (प्रह्लाददायक जलाशय) तथा वप्रीण (क्यारियों वाला जलस्थान अथवा तटप्रदेश) परिगृहीत होते हैं। उनके द्वारा कूप, तड़ाग (तालाब), द्रह (झील या जलाशय), नदी, वापी (चौकोन बावड़ी), पुष्करिणी (गोल बावड़ी या कमलों से युक्त बावड़ी, दीर्घिका (हौज या लम्बी बावड़ी), सरोवर, सर-पंक्ति (सरोवरश्रेणी), सरसरपंक्ति (एक सरोवर से दूसरे सरोवर में पानी जाने का नाला), एवं बिलपंक्ति (बिलों की श्रेणी) परिगृहीत होते हैं। तथा आराम (लतामण्डल आदि से सुशोभित परिवार के आमोद-प्रमोद का स्थान), उद्यान (सार्वजनिक बगीचा), कानन (सामान्य वृक्षों से युक्त ग्राम के निकटवर्ती वन), वन (गाँव से दूर स्थित जंगल), वनखण्ड (एक ही जाति के वृक्षों से युक्त वन), वनराजि (वृक्षों की पंक्ति), ये सब परिगृहीत किये हुए होते हैं। फिर देवकुल (देवमन्दिर), सभा, आश्रम, प्रपा (प्याऊ), स्तूभ (खम्भा या स्तूप), खाई, परिखा (ऊपर और नीचे समान खोदी हुई खाई), ये भी परिगृहीत की होती हैं; तथा प्राकार (किला), अट्टालक (अटारी), या किले पर बनाया हुआ मकान अथवा झरोखा), चरिका (घर और