Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 510
________________ पंचम शतक : उद्देशक - ६] [ ४६९ तो विक्रेता को ये सब क्रियाएँ मन्द रूप में लगती हैं। (३) खरीददार ने विक्रेता से किराना (माल) खरीद लिया, उस सौदे को पक्का करने के लिए साई भी दे दी, किन्तु माल दुकान से उठाया नहीं, तब तक खरीददार को उस किराने-सम्बन्धी क्रियाएँ हलके रूप में लगती हैं, जबकि विक्रेता को वे क्रियाएँ भारी रूप में लगती हैं। (४) विक्रेता द्वारा किराना खरीददार को सौंप दिये जाने पर वह उसे उठाकर ले जाता है, ऐसी स्थिति में विक्रेता को वे सब सम्भावित क्रियाएँ हलके रूप में लगती हैं, जबकि खरीददार को भारी रूप में। (५) विक्रेता से खरीददार ने किराना खरीद लिया, किन्तु उसका मूल्यरूप धन विक्रेता को नहीं दिया, ऐसी स्थिति में विक्रेता को आरम्भिकी आदि चारों क्रियाएँ हलके रूप में लगती हैं, जबकि खरीददार को वे ही क्रियाएँ भारी रूप के लगती हैं। और (६) किराने का मूल्यरूप धन खरीददार द्वारा चुका देने के बाद विक्रेता को धनसम्बन्धी चारों सम्भावित क्रियाएँ भारी-रूप में लगती हैं, जबकि खरीददार को वे सब सम्भावित क्रियाएँ अल्परूप में लगती हैं। क्रियाएँ : कब हल्के रूप में, कब भारी रूप में ? – (चुराये हुए माल की खोज करते समय विक्रेता (व्यापारी) विशेष प्रयत्नशील होता है, इसलिए उसे सम्भावित क्रियाएँ भारीरूप में लगती हैं, किन्तु जब व्यापारी को चुराया हुआ माल मिल जाता है, तब उसका खोज करने का प्रयत्न बन्द हो जाता है, इसलिए वे सब सम्भावित क्रियाएँ हल्की हो जाती हैं । (२) विक्रेता के यहाँ खरीददार के द्वारा खरीदा हुआ माल पड़ा रहता है, वह उसका होने से तत्सम्बन्धित क्रियाएँ भारीरूप में लगती हैं, किन्तु खरीददार उस माल को उठाकर अपने घर ले जाता है, तब खरीददार को वे सब क्रियाएँ भारीरूप में और विक्रेता को हल्के रूप में लगती हैं। (३) किराने का मूल्यरूप धन जब तक खरीददार द्वारा विक्रेता को नहीं दिया गया है, तब तक वह धन खरीददार का है, अतः उससे सम्बन्धित क्रियाएँ खरीददार को भारीरूप में और विक्रेता को हल्के रूप में लगती हैं, किन्तु खरीददार खरीदे हुए किराने का मूल्यरूप धन विक्रेता को चुका देता है, उस स्थिति में विक्रेता को उस धनसम्बन्धी क्रियाएँ भारीरूप में, तथा खरीददार को हल्के रूप में लगती हैं। मिथ्यादर्शन- प्रत्ययिकी क्रिया —— तभी लगती है, जब विक्रेता या क्रेता मिथ्यादृष्टि हो, सम्यग् - दृष्टि होने पर नहीं लगती । कठिन शब्दों के अर्थ विकिणमाणस्स - विक्रय करते हुए । अवहरेज्जा = अपहरण करे (चुरा ले जाए)। सिय कज्जइ - कदाचित् लगती है । पयणुई भवंति प्रतनु - हल्की या अल्प हो जाती हैं । साइज्जेज्जा - सत्यंकार ( सौदा पक्का) करने हेतु साई या बयाना दे दे। अभिसमण्णागए = माल वापस मिल जाए। कइयस्स = खरीददार के । गवेसमाणस्स - खोजते-ढूंढते हुए । अणुवणीए अनुपनीत — नहीं ले जाया गया । उवणीए - उपनीत—माल उठाकर ले जाया गया । २ १. (क) वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. १, पृ. २०६ (ख) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक २२८ २. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक २२८-२२९ =

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