Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पंचम शतक : उद्देशक-७]
[४८५ [११-३] त्रिप्रदेशीस्कन्ध को स्पर्श करता हुआ परमाणुपुद्गल (उपर्युक्त नौ विकल्पों में से) अन्तिम तीन विकल्पों (सातवें, आठवें और नौवें) से स्पर्श करता है। (अर्थात् ७. सर्व से एकदेश को, ८. सर्व से बहुत देशों को और ९. सर्व से सर्व को स्पर्श करता है।)
[४] जहा परमाणुपोग्गलो तिपदेसियं फुसाविओ एवं फुसावेयव्वो जाव अणंतपदेसिओ।
[११-४] जिस प्रकार एक परमाणुपुद्गल द्वारा त्रिप्रदेशीस्कन्ध के स्पर्श करने का आलापक कहा गया है, उसी प्रकार एक परमाणुपुद्गल से चतुष्प्रदेशीस्कन्ध, पंचप्रदेशीस्कन्ध यावत् संख्यातप्रदेशी स्कन्ध, असंख्यातप्रदेशीस्कन्ध एवं अनन्तप्रदेशीस्कन्ध तक को स्पर्श करने का आलापक कहना चाहिए। (अर्थात् —एक परमाणुपुद्गल अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक को तीन विकल्पों से स्पर्श करता है।)
१२. [१] दुपदेसिए णं भंते! खंधे परमाणुपोग्गलं पुसमाणे० पुच्छा ? ततिय-नवमेहिं फुसति।
[१२-१ प्र.] भगवन् ! द्विप्रदेशी स्कन्ध परमाणुपुद्गल को स्पर्श करता हुआ किस प्रकार स्पर्श करता है ?
। [१२-१ उ.] हे गौतम! (द्विप्रदेशीस्कन्ध परमाणुपुद्गल को) तीसरे और नौवें विकल्प से (अर्थात् एकदेश से सर्व को, तथा सर्व से सर्व को) स्पर्श करता है।
[२] दुपएसिओ दुपदेसियं फुसमाणो पढम-तइय-सत्तम-णवमेहिं फुसति।
[१२-२] द्विप्रदेशीस्कन्ध, द्विप्रदेशीस्कन्ध को स्पर्श करता हुआ पहले, तीसरे, सातवें और नौवें विकल्प से स्पर्श करता है।
[३] दुपएसिओ तिपदेसियं फुसमाणो आदिल्लएहि य पच्छिल्लएहि य तिहिं फुसति, मज्झिमएहिं तिहिं वि पडिसेहेयव्वं।
[१२-३] द्विप्रदेशीस्कन्ध, त्रिप्रदेशीस्कन्ध को स्पर्श करता हुआ आदिम तीन (प्रथम, द्वितीय और तृतीय) तथा अन्तिम तीन (सप्तम, अष्टम और नवम) विकल्पों से स्पर्श करता है। इसमें बीच के तीन (चतुर्थ, पंचम और षष्ठ) विकल्पों को छोड़ देना चाहिए।
[४] दुपदेसिओ जहा तिपदेसियं फुसावितो एवं फुसावेयव्वो जाव अणंतपदेसियं।
[१२-४] जिस प्रकार द्विप्रदेशीस्कन्ध द्वारा त्रिप्रदेशीस्कन्ध के स्पर्श का आलापक कहा गया है, उसी प्रकार द्विप्रदेशीस्कन्ध द्वारा चतुष्प्रदेशीस्कन्ध, पंचप्रदेशीस्कन्ध यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के स्पर्श का आलापक कहना चाहिए।
१३. [१] तिपदेसिए णं भंते! खंधे परमाणुपोग्गलं फुसमाणे० पुच्छा। .
ततिय-छट्ठ-नवमेहिं फुसति। __[१३-१ प्र.] भगवन् ! अब त्रिप्रदेशीस्कन्ध द्वारा परमाणुपुद्गल को स्पर्श करने के सम्बन्ध में पृच्छा है।