Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र तथाकथित मिथ्यादृष्टि अनगार विकुर्वणा करता है। वीर्यलब्धि से शक्तिस्फुरण करता है, वैक्रियलब्धि से वैक्रिय समुद्घात करके विविधरूपों की विकुर्वणा करता है और विभंगज्ञानलब्धि से राजगृहादिक पशु, पुरुष, प्रासाद आदि विविध रूपों को जानता-देखता है। मिथ्यादृष्टि होने के कारण इसका दर्शन और ज्ञान मिथ्या होता है।
कठिन शब्दों की व्याख्या समोहए-विकुर्वणा की। विवच्चासे विपरीत। जणवयवग्गं= जनपद-देश का समूह। तहाभावं—जिस प्रकार वस्तु है, उसकी उसी रूप में ज्ञान में अभिसन्धि–प्रीति होना तथाभाव है; अथवा जैसा संवेदन प्रतीत होता है, वैसे ही भाव (बाह्य अनुभव) वाला ज्ञान तथाभाव
अमायी सम्यग्दृष्टि अनगार द्वारा विकुर्वणा और उसका दर्शन
६. अणगारे णं भंते! भावियप्पा अमायी सम्मद्दिट्ठी वीरयलद्धीए वेउव्वियलद्धीए ओहिनाणलद्धीए रायगिहे नगरे समोहए, २ वाणारसीए नगरीए रूवाइं जाणइ पासइ ?
हंता, जाणति पासति।
[६ प्र.] भगवन् ! वाराणसी नगरी में रहा हुआ अमायी सम्यग्दृष्टि भावितात्मा अनगार, अपनी वीर्यलब्धि से, वैक्रियलब्धि से और अवधिज्ञानलब्धि से राजगृह नगर की विकुर्वणा करके (तद्गत) रूपों को जानता-देखता है ?
[६] हाँ (गौतम! वह उन रूपों को) जानता-देखता है। ७. [१] से भंते! किं तहाभाव जाणइ पासइ ? अन्नहाभावं जाणति पासति ?' गोयमा! तहाभावं जाणति पासति, नो अन्नहाभावं जाणति पासति।
[७-१ प्र.] भगवन् ! वह उन रूपों को तथाभाव से जानता-देखता है, अथवा अन्यथाभाव से जानता-देखता है ?
[७-१ उ.] गौतम! वह उन रूपों को तथाभाव से जानता-देखता है, किन्तु अन्यथाभाव से नहीं जानता-देखता।
[२] से केणठेणं भंते! एवं वुच्चइ ?
गोयमा! तस्स णं एवं भवति–एवं खलु अहं राहगिहे नगरे समोहए, समोहण्णित्ता वाणारसीए नगरीए रूवाइं जाणामि पासामि, से से दंसणे अविवच्चासे भवति, से तेणढेणं गोयमा! एवं वुच्चति।
[७-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि वह तथाभाव से उन रूपों को जानता-देखता है, अन्यथाभाव से नहीं ?
[७-२ उ.] गौतम! उस अनगार के मन में इस प्रकार का विचार होता है कि 'वाराणसी नगरी
१. भगवतीसूत्र अभय. वृत्ति, पत्रांक १९३