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तृतीय शतक : उद्देशक-८]
[३८७ ज्योतिष्क देवों के अधिपति इन्द्र—ज्योतिष्क देवों में अनेक सूर्य एवं चन्द्रमा इन्द्र हैं। वाणव्यन्तर और ज्योतिष्क देवों में लोकपाल नहीं होते।
वैमानिक देवों के अधिपति इन्द्र एवं लोकपाल वैमानिक देवों में सौधर्म से लेकर अच्युतकल्प तक प्रत्येक अपने-अपने कल्प के नाम का एक-एक इन्द्र है। यथा-सौधर्मेन्द्र शक्रेन्द्र, ईशानेन्द्र, सनत्कुमारेन्द्र आदि। किन्तु ऊपर के चार देवलोकों में दो-दो देवलोकों का एक-एक इन्द्र है; यथा-नौवें और दसवें देवलोक (आणत और प्राणत) का एक ही प्राणतेन्द्र है। इसी प्रकार ग्यारहवें
और बारहवें देवलोक (आरण और अच्युत) का भी एक ही अच्युतेन्द्र है। इस प्रकार बारह देवलोकों में कुल १० इन्द्र हैं। नौ ग्रैवेयकों और पांच अनुत्तर विमानों में कोई इन्द्र नहीं होते। वहाँ सभी अहमिन्द्र' (सर्वतन्त्र स्वतंत्र) होते हैं। सौधर्म आदि कल्पों के प्रत्येक इन्द्र के आधिपत्य में सोम, यम आदि चारचार लोकपाल होते हैं, जिनके आधिपत्य में अन्य देव होते हैं।
॥ तृतीय शतक: अष्टम उद्देशक समाप्त।
१. . (क) तत्त्वार्थसूत्र अ. ४ सू. ६ का भाष्य, पृ. ९२
(ख) 'बायस्त्रिंश-लोकपालवा व्यन्तरज्योतिष्का:-तत्त्वार्थसूत्र अ.४ सू.५, भाष्य पृ. ९२ २. (क) तत्त्वार्थ. भाष्य अ. ४ सू. ६, पृ. ९३, (ख) भगवती अ. वृत्ति पत्रांक २०१