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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र पत्थर —— कोयला) और कसट्टिका ( लोहे का काट — मैल), ये सब द्रव्य किन (जीवों के) शरीर कहलाते हैं ?
[१५ उ.] गौतम ! लोहा, तांबा, कलई, शीशा, कोयला और लोहे का काट; ये सब द्रव्य पूर्वप्रज्ञापना की अपेक्षा से पृथ्वीकायिक जीवों के शरीर कहे जा सकते हैं और उसके बाद शस्त्रातीत यावत् शस्त्र - परिणामित होने पर ये अग्निकायिक जीवों के शरीर कहे जा सकते हैं। अस्थि आदि तथा अंगार आदि के शरीर का उनकी पूर्वावस्था एवं पश्चादवस्था की अपेक्षा से प्ररूपणा
१६. अह भंते! अट्ठी अट्ठिज्झामे, चम्मे चम्मज्झामे, रोमे रोमज्झामे, सिंगे सिंगज्झामे, खुरे खुरज्झामे, नखे नखज्झामे, एते णं किंसरीरा ति वत्तव्वं सिया ?
गोयमा ! अट्टी चम्मे रोमे सिंगे खुरे नहे, एए णं तसपाणजीवसरीरा । अद्विज्झामे चम्मज्झामे रोमज्झामे सिंगज्झामे खुरज्झामे णहज्झामे, एए णं पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च तसपाणजीवसरीरा, ततो पच्छा सत्यातीता जाव अगणि० जाव सिया ।
[१६ प्र.] भगवन्! और ये हड्डी, अस्थिध्याम (अग्नि से दूसरे स्वरूप पर्यायान्तर को प्राप्त हड्डी और उसका जला हुआ भाग), चमड़ा, चमड़े का जला हुआ स्वरूपान्तरप्राप्त भाग, रोम, अग्निज्वलित रोम, सींग, अग्नि प्रज्वलित विकृत सींग, खुर, अग्निप्रज्वलित खुर, नख और अग्निप्रज्वलित नख, ये सब किन (जीवों) के शरीर कहे जा सकते हैं ?
शरीर
[१६ उ.] गौतम! अस्थि (हड्डी), चमड़ा, रोम, सींग, खुर और नख ये सब त्रसजीवों कहे जा सकते हैं, और जली हुई हड्डी, प्रज्वलित विकृत चमड़ा, जले हुए रोम, प्रज्वलित-रूपान्तरप्राप्त • सींग, प्रज्वलित खुर और प्रज्वलित नख; ये सब पूर्वभावप्रज्ञापना की अपेक्षा से तो त्रसजीवों के शरीर; किन्तु उसके पश्चात् शस्त्रातीत यावत् अग्निपरिणामित होने पर ये अग्निकायिक जीवों के शरीर कहे जा सकते हैं।
१७. अह भंते! इंगाले छारिए, भुसे, गोमए एए णं किंसरीरा ति वत्तव्वं सिया ? ! इंगा छारिए भुसे गोमए एए णं पुव्वभावपण्णवणाए एगिंदियजीवसरीरप्पओगपरिणमिया वि जाव पंचिंदियजीवसरीरप्पओगपरिणामिया वि, तओ पच्छा सत्थातीया जाव अगणिजीवसरीरा ति वत्तव्वं सिया ।
[१७ प्र.] भगवन्! अब प्रश्न है— अंगार (कोयला, जला हुआ ईंधन या अंगारा) राख, भूसा, और गोबर, इन सबको किन जीवों के शरीर कहे जाएँ ?
[१७ उ.] गौतम ! अंगार, राख, भूसा और गोबर (छाणा) ये सब पूर्वभाव प्रज्ञापना की अपेक्षा से एकेन्द्रियजीवों द्वारा अपने शरीर रूप से, प्रयोगों से अपने व्यापार से अपने साथ परिणामित एकेन्द्रिय शरीर हैं, यावत् (यथासम्भव द्वीन्द्रिय से) पंचेन्द्रिय जीवों तक के शरीर भी कहे जा सकते हैं, और तत्पश्चात् शस्त्रातीत यावत् अग्निकाय - परिणामित हो जाने पर वे अग्निकायिक जीवों के शरीर कहे