Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चउत्थो उद्देसओ : 'सह'
चतुर्थ उद्देशक : शब्द छद्मस्थ और केवली द्वारा शब्द-श्रवण-सम्बन्धी सीमा की प्ररूपणा
१. छउमत्थे णं भंते! मणुस्से आउडिज्जमाणाइं सहाई सुणेति, तं जहा–संखसदाणि वा, सिंगसदाणिवा, संखियसहाणि वा,खरमुहिसदाणि वा, पोयासहाणि वा, परिपिरियासदाणि वा, पणवसहाणि वा, पडहसदाणि वा, भंभासदाणि वा, होरंभसहाणि वा, भेरिसदाणि वा, झल्लरिसहाणि वा, दुंदुभिसहाणि वा, तताणि वा, वितताणि वा, घणाणि वा, झुसिराणि वा ?
हंता,गोयमा! छउमत्थेणं मणूसे आउडिज्जमाणाइंसदाइं सुणेति, तंजहा संखसहाणि वा जाव झुसिराणि वा।
[१ प्र.] भगवन्! छद्मस्थ मनुष्य क्या बजाये जाते हुए वाद्यों (के) शब्दों को सुनता है ? यथा शंख के शब्द, रणसींगे के शब्द, शंखिका (छोटे शंख) के शब्द, खरमुही (काहली नामक बाजे) के शब्द, पोता (बड़ी काहली) के शब्द, परिपीरिता (सूअर के चमड़े से मढ़े हुए मुख वाले एक प्रकार के बाजे) के शब्द, पणव (ढोल) के शब्द, पटह (ढोलकी) के शब्द, भंभा (छोटी भेरी) के शब्द, झल्लरी (झालर) के शब्द, दुन्दुभि के शब्द, तत (तांत बाजे वालों-वीणा आदि वाद्यों) के शब्द, विततशब्द (ढोल आदि विस्तृत बाजों के शब्द), घनशब्द (ठोस बाजों-कांस्य, ताल आदि वाद्यों के शब्द) शुषिरशब्द (बीच में पोले बाजों-बिगुल, बाँसुरी, बंशी आदि के शब्द); इत्यादि बाजों के शब्दों को।
[१ उ.] हाँ गौतम! छद्मस्थ मनुष्य बजाये जाते हुए शंख यावत्-शुषिर आदि (पूर्वोक्त) वाद्यों के शब्दों को सुनता है।
२. ताइं भंते! किं पुट्ठाइं सुणेति ? अपुट्ठाइं सुणेति ? गोयमा! पुट्ठाई सुणेति, नो अपुट्ठाइं सुणेति जाव णियमा छहिसिं सुणेति।
[२ प्र.] भगवन् ! क्या वह (छद्मस्थ) उन (पूर्वोक्त वाद्यों के) शब्दों को स्पृष्ट होने (कानों से स्पर्श किये जाने-टकराने) पर सुनता है, या अस्पृष्ट होने (कानों से स्पर्श न करने न टकराने) पर भी सुन लेता है?
[२ उ.] गौतम! छद्मस्थ मनुष्य (उन वाद्यों) के स्पृष्ट (कानों से स्पर्श किये गए टकराए हुए) शब्दों को सुनता है, अस्पृष्ट शब्दों को नहीं सुनता; यावत् नियम से छह दिशाओं से आए हुए स्पृष्ट
१. 'पढाई सुणेति' इस सम्बन्ध में भगवतीसूत्र प्रथम शतक के प्रथम उद्देशक का आहाराधिकार देखना चाहिए।
भगवती. (टीकानुवाद टिप्पणयुक्त) खण्ड १, पृ.७० से ७२ तक।