Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 495
________________ ४५४] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र अतीन्द्रिय प्रत्यक्षज्ञानी केवली इन्द्रियों से नहीं जानते-देखते ३४.[१] केवली णं भंते! आयाणेहिं जाणइ, पासइ ? गोयमा! णो इणढे समठे। [३४-१ प्र.] भगवन् ! क्या केवली भगवान् आदानों (इन्द्रियों) से जानते और देखते हैं ? [३४-१ उ.] गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। [२] से केणढेणं जाव केवली णं आयाणेहिं न जाणति, न पासति ? गोयमा! केवली णं पुरथिमेणं मियं पि जाणति, अमियं पि जाणइ जाव' निव्वुडे दंसणे केवलिस्स। से तेणढेणं०। [३४-२ प्र.] भगवन्! किस कारण से केवली भगवान् इन्द्रियों (आदानों) से नहीं जानतेदेखते ? [३४-२ उ.] गौतम! केवली भगवान् पूर्वदिशा में मित (सीमित) भी जानते-देखते हैं, अमित (असीम) भी जानते-देखते हैं, यावत् केवली भगवान् का (ज्ञान और) दर्शन निरावरण है। इस कारण से कहा गया है कि वे इन्द्रियों से नहीं जानते-देखते। विवेचनअतीन्द्रियप्रत्यक्षज्ञानी केवली इन्द्रियों से नहीं जानते-देखते-प्रस्तुत सूत्र में यह सैद्धान्तिक प्ररूपणा की गई है कि केवलज्ञानी का दर्शन और ज्ञान परिपूर्ण एवं निरावरण होने के कारण उन्हें इन्द्रियों से जानने-देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती। केवली भगवान् का वर्तमान और भविष्य में अवगाहन-सामर्थ्य __ ३५.[१] केवली णं भंते! अस्सि समयंसि जेसु आगासपदेसेसु हत्थं वा पादं वा बाहं वा ऊरुं वा ओगाहित्ताणं चिट्ठति, पभूणं भंते! केवली सेयकालंसि वि तेसु चेव आगासपदेसेसु हत्थं वा जाव ओगाहित्ताणं चिट्ठित्तए ? ___ गोयमा! णो इणढे समठे। [३५-१ प्र.] भगवन् ! केवली भगवान् इस समय (वर्तमान) में जिन आकाश-प्रदेशों पर अपने हाथ, पैर, बाहू और उरू (जंघा) को अवगाहित करके रहते हैं, क्या भविष्यकाल में भी वे उन्हीं आकाशप्रदेशों पर अपने हाथ आदि को अवगाहित करके रह सकते हैं ? [३५-१ उ.] गौतम! यह अर्थ (बात) समर्थ (शक्य) नहीं है। [२] से केणठेणं भंते! जाव केवली णं अस्सिं समयंसि जेसु आगासपदेसेस हत्थं वा जाव चिट्ठति नो णं पभू केवली सेयकालंसि वि तेसु चेव आगासपदेसेसु हत्थं वा जाव १. 'जाव' शब्द से यहां शतक ५ उ. ४, सू. ४-२ में अंकित पाठ—एवं दाहिणेणं'...से लेकर 'निव्वुडे दसणे केवलिस्स' तक समझना चाहिए।

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