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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र पण्णत्ता। अहावच्चाभिण्णायाणं देवाणं एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता। एमहिड्ढीए जाव एमहाणुभागे सोमे महाराया।
[४-७] देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल–सोम महाराज की स्थिति तीन भाग सहित एक पल्योपम की होती है, और उसके द्वारा अपत्यरूप से अभिमत देवों की स्थिति एक पल्योपम की होती
इस प्रकार सोम महाराज, महाऋद्धि और यावत् महाप्रभाव वाला है।
विवेचन सोम लोकपाल के विमानस्थान आदि से सम्बन्धित वर्णन प्रस्तुत चतुर्थ सूत्र में शक्रेन्द्र के लोकपाल सोम महाराज के विमान का स्थान, उसके आयाम, विष्कम्भ, परिक्षेप तथा उसकी राजधानी, दुर्ग, पीठबन्ध, प्रासाद आदि का वर्णन किया गया है। साथ ही उसके आज्ञानुवर्ती देववर्ग, जम्बूद्वीपवर्ती मेरुगिरि के दक्षिण में होने वाले कार्यों से सुपरिचित, एवं उसके अपत्य रूप से अभिमत अंगारक आदि देवों, तथा सोम महाराज की स्थिति, ऋद्धि आदि का निरूपण भी अंकित है।
कठिन शब्दों के अर्थ-वडेंसिया-अवतंसक श्रेष्ठ। वेमाणियाणं पमाणस्स० वैमानिकों के सौधर्म विमान में रहे हुए किले, महल और द्वार आदि के प्रमाण (माप) से सोम लोकपाल की नगरी के किलों आदि का प्रमाण आधा जानना। सोमकाइया सोम लोकपाल के निकाय के परिवाररूप देव। तारारूवा-तारकरूप देव। तब्भत्तिय सोम की भक्ति-बहुमान करने वाले। तपक्खिय-कार्य आ पड़ने पर सोम के पक्ष में सहायक। तब्भारिय-सोम से भरण-पोषण पाने वाले अथवा सोमदेव का कार्यभार वहन करने वाले तद्भारिक देव। गहदंडा-दण्ड की तरह सीधी पंक्ति बद्ध ग्रहमाला। गहमूसलामूसल की तरह आकृति में बद्ध ग्रह । गहगज्जियाग्रह के गति (गमन) करते समय होने वाली गर्जना।गहयुद्धा-ग्रहों का आमने-सामने (उत्तर-दक्षिण में) पंक्तिबद्ध रहना।गहसिंघाडगा-सिंघाडे के आकार में ग्रहों का रहना। गहावसव्वा-ग्रहों की बाईं प्रतिकूल वक्र चाल। अब्भबादल। अब्भरुक्खा=आकाश में बादलों की वृक्ष रूप बनी आकृतियाँ। धूमिका-धुम्मस। महिका-ओस। चंदोवरागा-चन्द्रग्रहण। सूरोवरागा-सूर्यग्रहण। उदगमच्छा-उदक-मत्स्य इन्द्रधनुष के खण्ड-भाग। कपिहसिय बिना बादलों के सहसा बिजली चमकना अथवा वानर जैसी विकृत मुखाकृति का हास्य। अमोह-सूर्य के उदयास्त के समय आकाश में खिंच जाने वाली लाल-काली लकीरें अथवा ऊँचे किये हुए गाड़े के आकार जैसी आकाशस्थ सूर्य किरण के विकास से हुई बड़ी-बड़ी लकीरें। पाइणवायापूर्वदिशा की हवाएँ, पडीण-वायाइ-पश्चिमादि अन्य दिशाओं की हवाएँ। पाणक्खया-बल का क्षय। जणक्खया-लोक-मरण। वसणब्भूया आपदारूप; (व्यसनभूत) आफतें। अणारिया पापमय। अहावच्चा अभिण्णाया-पुत्र के जैसे देव, जो अभिमत वस्तु करने वाले होने से अभिज्ञात होते हैं। अथवा पुत्र की तरह माने हुए सोमदेव-सोम लोकपाल के सामानिक देव। सोमदेवकायिक-सोमदेवों के परिवाररूप देव।
सूर्य और चन्द्र की स्थिति यद्यपि अपत्यरूप से अभिमत सूर्य की स्थिति एक हजार वर्ष १. भगवतीसूत्र अ., वृत्ति, पत्रांक १९६-१९७