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तृतीय शतक : उद्देशक-७]
[३७९ से अथवा वरुणकायिक देवों से अज्ञात आदि नहीं हैं।
[४] सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वरुणस्स महारण्णो जाव अहावच्चाभिण्णाया होत्था, तं जहा कक्कोडए कद्दमए अंजणे संखवालए पुंडे पलासे मोएज्जए दहिमुहे अयंपुले कायरिए।
[६-४] देवेन्द्र देवराज शक्र के (तृतीय) लोकपाल–वरुण महाराज के ये देव अपत्यरूप से अभिमत हैं। यथा—कर्कोटक (कर्कोटक नामक पर्वत निवासी नागराज), कर्दमक (अग्निकोण में विद्युत्प्रभ नामक पर्वतवासी नागराज); अंजन (वेलम्ब नामक वायुकुमारेन्द्र का लोकपाल), शंखपाल (धरणेन्द्र नामक नागराज का लोकपाल), पुण्ड्र, पलाश, मोद, जय, दधिमुख अयंपुल और कातरिक।
[५] सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वरुणस्स महारण्णो देसूणाई दो पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता। अहावच्चाभिण्णायाणं देवाणं एगं पलिओवमं ठिती पण्णत्ता। एमहिड्ढीए जाव वरुणे महाराया।
[६-५] देवेन्द्र देवराज शक्र के तृतीय लोकपाल वरुण महाराज की स्थिति देशोन दो पल्योपम की कही गई है और वरुण महाराज के अपत्यरूप से अभिमत देवों की स्थिति एक पल्योपम की कही गई है।
वरुण महाराज ऐसी महाऋद्धि यावत् महाप्रभाव वाला है।
विवेचन–वरुण लोकपाल के विमान-स्थान आदि से सम्बन्धित वर्णन—प्रस्तुत छठे सूत्र में वरुण लोकपाल के विमान के स्थान, उसके परिमाण, राजधानी, प्रासादावतंसक, वरुण के आज्ञानुवर्ती देव, अपत्यरूप से अभिमत देव, उसके द्वारा ज्ञात आदि कार्यकलाप एवं उसकी स्थिति आदि का वर्णन किया गया है। वैश्रमण लोकपाल के विमानस्थान आदि से सम्बन्धित वर्णन
७.[१] कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो वेसमणस्स महारण्णो वग्गू णामं महाविमाणे पण्णत्ते?
गोयमा! तस्स णं सोहम्मवडिंसयस्स महाविमाणस्स उत्तरेणं जहा सोमस्स विमाणरायहाणिवत्तव्वया तहा नेयव्वा जाव पासायवडिंसया।
[७-१ प्र.] भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र के (चतुर्थ) लोकपाल–वैश्रमण महाराज का वल्गु नामक महाविमान कहाँ है ?
[७-१ उ.] गौतम! वैश्रमण महाराज का विमान, सौधर्मावतंसक नामक महाविमान के उत्तर में है। इस सम्बन्ध में सारा वर्णन सोम महाराज के महाविमान की तरह जानना चाहिए; और वह यावत् राजधानी यावत् प्रासादावतंसक तक का वर्णन भी उसी तरह जान लेना चाहिए।
[२] सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वेसमणस्स महारण्णो इमे देवा आणा-उववाय,