Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र जाव अभिसेया नवरं सोमे देवे।
. [४-१ प्र.] भगवन्! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल सोम नामक महाराज का सन्ध्याप्रभ नामक महाविमान कहाँ है ?
[४-१ उ.] गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मन्दर (मेरु) पर्वत से दक्षिण दिशा में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहु सम भूमिभाग से ऊपर चन्द्र, सूर्य, ग्रह नक्षत्र और तारारूप (तारे) आते हैं। उनसे बहुत योजन ऊपर यावत् पांच अवतंसक कहे गए हैं, वे इस प्रकार हैं—अशोकावतंसक, सप्तपर्णावतंसक, चम्पकावतंसक चूतावतंसक और मध्य में सौधर्मावतंसक हैं। उस सौधर्मावतंसक महाविमान से पूर्व में, सौधर्मकल्प से असंख्य योजन दूर जाने के बाद, वहाँ पर देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-सोम नामक महाराज का सन्ध्याप्रभ नामक महाविमान आता है, जिसकी लम्बाई-चौड़ाई साढ़े बारह लाख योजन है। उसका परिक्षेप (परिधि) उनचालीस लाख बावन हजार आठ सौ अड़तालीस (३९५२८४८) योजन के कुछ अधिक है। इस विषय में सूर्याभदेव के विमान की जो वक्तव्यता है, वह सारी वक्तव्यता.(राजप्रश्नीय सूत्र में वर्णित) 'अभिषेक' तक कह लेनी चाहिए। इतना विशेष है कि यहाँ सूर्याभदेव के स्थान में 'सोमदेव' कहना चाहिए।
[२] संझप्पभस्स णं महाविमाणस्स अहे सपक्खिं सपडिदिसिं असंखेज्जाइं जोयणसयसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो सोमा नामं रायहाणी पण्णत्ता, एगं जोयणसयसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं जंबुद्दीवपमाणा।
[४-२] सन्ध्याप्रभ महाविमान के सपक्ष-सप्रतिदेश, अर्थात् ठीक नीचे, असंख्य लाख योजन आगे (दूर) जाने पर देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल सोम महाराज की सोमा नाम की राजधानी है, जो एक लाख योजन लम्बी-चौड़ी है, और जम्बूद्वीप जितनी है।
[३] वेमाणियाणं पमाणस्स अद्धं नेयव्वं जाव उवरियलेणं सोलस जोयणसहस्साई आयाम-विक्खंभेणं, पण्णासं जोयणसहस्साई पंच य सत्ताणउए जोयणसते किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं पण्णत्ते। पासायाणं चत्तारि परिवाडीओ नेयव्वाओ सेसा नत्थि।
[४-३] इस राजधानी में जो किले आदि हैं, उनका परिमाण वैमानिक देवों के किले आदि के परिमाण से आधा कहना चाहिए। इस तरह यावत् घर में ऊपर के पीठबन्ध तक कहना चाहिए। घर के पीठबन्ध का आयाम (लम्बाई) और विष्कम्भ (चौड़ाई) सोलह हजार योजन है। उसका परिक्षेप (परिधि) पचास हजार पांच सौ सत्तानवै योजन से कुछ अधिक कहा गया है। प्रासादों की चार परिपाटियाँ कहनी चाहिए, शेष नहीं।
[४] सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो इमे देवा आणा-उववायवयण-निद्देसे चिटुंति, तं जहा सोमकाइया ति वा, सोमदेवयकाइया ति वा, विज्जुकुमारा विज्जुकुमारीओ, अग्गिकुमारा अग्गिकुमारीओ, वाउकुमारा वाउकुमारीओ, चंदा सूरा गहा नक्खत्त तारारूवा, जे यावन्ने तहप्पगारा सव्वे ते तब्भत्तिया तप्पक्खिया तब्भारिया सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो आणा-उववाय-वयण-निदेसे चिटुंति।