Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[३] मायी णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंते कालं करेइ नत्थि तस्स आराहणा । [१९-३] मायी मनुष्य उस स्थान ( अपने द्वारा किये गये वैक्रियकरणरूप प्रवृत्तिप्रयोग ) की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना (यदि) काल करता है, तो उसके आराधना नहीं होती । [४] अमायी णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिक्कंते कालं करेइ अत्थि तस्स आराहणा । 'सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति'० ।
३५४]
॥ तइए सए : चउत्थो उद्देसो समत्तो ॥
[१९-४] (किन्तु पूर्व मायी जीवन में अपने द्वारा किये गए वैक्रियकरणरूप) उस (विराधना)स्थान के विषय में पश्चात्ताप (आत्मनिन्दा) करके अमायी ( बना हुआ) मनुष्य (यदि) आलोचना और प्रतिक्रमण करके काल करता है, तो उसके आराधना होती है ।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन्! यह इसी प्रकार है'; यों कहकर यावत् गौतम स्वामी विचरण करते हैं ।
विवेचन विकुर्वणा से मायी की विराधना और अमायी की आराधना ——— प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि मायी अर्थात कषाययुक्त प्रमादी विकुर्वणा करके और उक्त वैक्रियकरणरूप दोष को आलोचना-प्रतिक्रमण न करके विराधक होता है; इसके विपरीत वर्तमान में विकुर्वणा न करके पूर्वविकुर्वित स्थान का आलोचन - प्रतिक्रमण करके आराधक हो जाता है ।
मायी द्वारा विक्रिया — जो मनुष्य सरस - स्निग्ध आहार- पानी करके बार-बार वमन विरेचन करता है, वह मायीप्रमादी है; क्योंकि वह वर्ण (रूप-रंग) तथा बल आदि के लिए प्रणीत भोजनपान तथा वमन करता है। आशय यह है कि इस प्रकार इसके द्वारा वैक्रियकरण भी होता है।
अमायी विक्रिया नहीं करता— अमायी अकषायित्व के कारण विक्रिया का इच्छुक नहीं होता, इसलिए वह प्रथम तो रूखा सूखा आहार करता है, तथा वह वमन नहीं करता । यदि उसने पूर्व जीवन में मायी होने से वैक्रियरूप किया था तो उसका आलोचन - प्रतिक्रमण करके अमायी बन गया । इसलिए वह आराधक हो जाता है ।
॥ तृतीय शतक : चतुर्थ उद्देशक समाप्त ॥
१. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक १८९