Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र १४. केवतिकालस्स णं भंते! असुरकुमारा देवा उड्ढं उप्पयंति जाव सोहम्मं कप्पं गया य, गमिस्संति य?
गोयमा! अणंताहिं ओसप्पिणीहिं अणंताहिं उस्सप्पिणीहिं समतिक्कंताहिं, अस्थि णं एस भावे लोयच्छेरयभूए समुप्पजइ-जं णं असुरकुमारा देवा उड्ढं उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो।
[१४ प्र.] भगवन् ! कितने काल में (कितना समय व्यतीत होने पर) असुरकुमार देव ऊर्ध्वगमन करते हैं, तथा सौधर्मकल्प तक ऊपर गये हैं, जाते हैं और जायेंगे ?
[१४ उ.] गौतम! अनन्त उत्सर्पिणी-काल और अनन्त अवसर्पिणी काल व्यतीत होने के पश्चात् लोक में आश्चर्यभूत (आश्चर्यजनक) यह भाव समुत्पन्न होता है कि असुरकुमार देव ऊर्ध्वउत्पतन (गमन) करते हैं, यावत् सौधर्मकल्प तक जाते हैं।
१५. किंनिस्साए णं भंते! असुरकुमारा देवा उड्ढं उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो ?
से जहानामए इह सबरा इ वा बब्बरा इ वा टंकणा इ वा चुच्चुया इ वा पल्हया इ वा पुलिंदा इ वा एगं महं रण्णं वा, गड्डं वा दुग्गं वा दरिं वा विसमं वा पव्वतं वा णसाए सुमहल्लमवि आसबलं वा हत्थिबलं वा जोहबलं वा धणुबलं वा आगलेंति, एवामेव असुरकुमारा वि देवा, णऽन्नत्थ अरहंते वा, अरहंतचेइयाणि वा, अणगारे वा भावियप्पणो निस्साए उड्ढे उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो।
[१५ प्र.] भगवन् ! किसका आश्रय (निश्राय) लेकर असुरकुमार देव ऊर्ध्व-गमन करते हैं, यावत् ऊपर सौधर्मकल्प तक जाते हैं ?
_ [१५ उ.] हे गौतम! जिस प्रकार यहाँ (इस मनुष्यलोक में) शबर, बर्बर टंकण (जातीय म्लेच्छ) या चुर्चुक (अथवा भुत्तुय), प्रश्नक अथवा पुलिन्द जाति के लोग किसी बड़े अरण्य (जंगल) का, गड्ढे का, दुर्ग (किले) का, गुफा का, किसी विषम (ऊबड़-खाबड़ प्रदेश या बीहड़ या वृक्षों से सघन) स्थान का, अथवा पर्वत का आश्रय लेकर एक महान् एवं व्यवस्थित अश्ववाहिनी को, गजवाहिनी को, पैदल (पदाति) सेना को, अथवा धनुर्धारियों की सेना को आकुल-व्याकुल कर देते (अर्थात् साहसहीन करके जीत लेते) हैं; इसी प्रकार असुरकुमार देव भी एकमात्र अरिहन्तों का या अरिहन्तदेव के चैत्यों का, अथवा भावितात्मा अनगारों का आश्रय (निश्राय) लेकर ऊर्ध्वगमन करते (उड़ते) हैं, यावत् सौधर्मकल्प तक ऊपर जाते हैं।
१६. सव्वे वि णं भंते! असुरकुमारा देव उड्ढे उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो ?
गोयमा! णो इणढे समठे, महिड्डिया णं असुरकुमारा देवा उड्ढं उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो।
[१६ प्र.] भगवन् ! क्या सभी असुरकुमार देव सौधर्मकल्प तक यावत् ऊर्ध्वगमन करते हैं ? [१६ उ.] गौतम! यह अर्थ (बात) समर्थ (शक्य) नहीं है। अर्थात् सभी असुरकुमार देव ऊपर