Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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३०६ ]
[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
१०. किंपत्तियं णं भंते! असुरकुमारा देवा नंदीसरवरदीवं गता य, गमिस्संति य ? गोयमा ! जे इमे अरिहंता भगवंता एतेसिं णं जम्मणमहेसु वा निक्खमणमहेसु वा णाणुप्पत्ति-महिमासु वा परिनिव्वाणमहिमासु वा एवं खलु असुरकुमारा देवा नंदीसरवरं दीवं गता य, गमिस्संति य ।
[१० प्र.] भगवन्! असुरकुमार देव, नन्दीश्वरवरद्वीप किस प्रयोजन (निमित्त या कारण) से गए हैं, (जाते हैं) और जायेंगे ?
[१० उ. ] हे गौतम! जो ये अरिहन्त भगवान् (तीर्थंकर) हैं, इनके जन्म- महोत्सव में, निष्क्रमण (दीक्षा) महोत्सव में, ज्ञानोत्पत्ति (केवलज्ञान उत्पन्न) होने पर महिमा (उत्सव) करने, तथा परिनिर्वाण (मोक्षगमन) पर महिमा (महोत्सव) करने के लिए असुरकुमार देव, नन्दीश्वरद्वीप गए हैं, जाते हैं और जायेंगे।
११. अत्थि णं भंते! असुरकुमाराणं देवाणं उड्ढं गतिविसए प. ? हंता, अत्थि ।
[११ प्र.] भगवन् ! क्या असुरकुमार देवों में (अपने स्थान से ) ऊर्ध्व (ऊपर) गमन - विषयक सामर्थ्य है ?
[११ उ.] हाँ गौतम ! ( उनमें अपने स्थान से ऊँचे जाने की शक्ति) है ।
१२. केवतियं च णं भंते! असुरकुमाराणं देवाणं उड्ढं गतिविसए ? गोमा ! जाव अच्चुतो कप्पो । सोहम्मं पुण कप्पं गता य, गमिस्संति य । [१२ प्र.] भगवन्! असुरकुमारदेवों की ऊर्ध्वगमनविषयक शक्ति कितनी है ?
[१२ उ.] गौतम! असुरकुमारदेव अपने स्थान से यावत् अच्युतकल्प ( बारहवें देवलोक) तक ऊपर जाने में समर्थ हैं। (ऊर्ध्वगमन - विषयक उनकी यह शक्तिमात्र है, किन्तु वे वहाँ तक कभी गए नहीं, जाते नहीं और न जायेंगे ।) अपितु वे सौधर्मकल्प (प्रथम देवलोक ) तक गए हैं, (जाते हैं) और जायेंगे ।
१३. [ १ ] किंपत्तियं णं भंते! असुरकुमारा देवा सोहम्मं कप्पं गता य, गम्मिसंति
य ?
गोयमा! तेसि णं देवाणं भवपच्चइयवेराणुबंधे । ते णं देवा विकुव्वेमाणा परियारेमाणा वा आयरक्खे देवे वित्तासेंति । अहालहुस्सगाइं रयणाई गहाय आयाए एगंतमंतं अवक्कमंति । [१३ - १ प्र.] भगवन्! असुरकुमार देव किस प्रयोजन ( निमित्त कारण ) से सौधर्मकल्प तक गए हैं, (जाते हैं) और जायेंगे ?
[१३-१उ.] हे गौतम! उन (असुरकुमार) देवों का वैमानिक देवों के साथ भवप्रत्ययिक (जन्मजात) वैरानुबन्ध होता है । इस कारण वे देव क्रोधवश वैक्रियशक्ति द्वारा नानारूप बनाते हुए तथा परकीय देवियों के साथ (परिचार) संभोग करते हुए (वैमानिक) आत्मरक्षक देवों को त्रास पहुँचाते हैं,