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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र आउत्तं-उपयोगयुक्त। तुयट्टमाणस्स-करवट बदलते हुए। वेमाया विमात्रा से थोड़ी-सी मात्रा से भी। सपेहाय-स्वेच्छा से। सुहमा सूक्ष्मबंधादिरूप काल वाली। ईरियावहिया केवल योगों से जनित ईर्यापथिकी क्रिया। उपशान्तमोह, क्षीणमोह और सयोगिकेवली गुणस्थानवर्ती वीतरागों में जब तक ऐसी सूक्ष्म ईर्यापथिकी क्रिया रहती है, तब तक उनके सातावेदनीय कर्मबन्ध होता है। प्रमत्तसंयमी और अप्रमत्तसंयमी के प्रमत्तसंयम और अप्रमत्तसंयम के सर्वकाल का प्ररूपण
१५. पमत्तसंजयस्स णं भंते! पमत्तसंजमे वट्टमाणस्स सव्वा वि य णं पमत्तद्धा कालतो केवच्चिरं होति ?
___मंडियपुत्ता! एगजीवं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी। णाणाजीवे पडुच्च सव्वद्धा।
[१५ प्र.] भगवन् ! प्रमत्त-संयम में प्रवर्तमान प्रमत्तसंयम का सब मिला कर प्रमत्तसंयम-काल कितना होता है ?
[१५ उ.] मण्डितपुत्र! एक जीव की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि(काल प्रमत्तसंयम का काल) होता है। अनेक जीवों की अपेक्षा सर्वकाल (सर्वाद्धा) (प्रमत्तसंयम का काल) होता है।
१६. अप्पमत्तसंजयस्स णं भंते! अप्पमत्तसंजमे वट्टमाणस्स सव्वा वि य णं अप्पमत्तद्धा कालतो केवच्चिरं होति ?
मंडियपुत्ता! एगजीवं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी देसूणा। णाणाजीवे पडुच्च सव्वद्धं।
सेवं भंते! २ त्ति भगवं मंडियपुत्ते अणगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, २ संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
[१६ प्र.] भगवन्! अप्रमत्तसंयम में प्रवर्त्तमान अप्रमत्तसंयम का सब मिलाकर अप्रमत्तसंयमकाल कितना होता है ?
[१६ उ.] मण्डितपुत्र! एक जीव की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि(काल अप्रमत्तसंयम का काल) होता है। अनेक जीवों की अपेक्षा सर्वकाल होता है।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन्! यह इसी प्रकार है!' यों कह कर भगवान् मण्डितपुत्र
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(क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक १८३ से १८५ तक (ख) भगवती विवेचन (पं. घेवरचन्दजी) भा. २, पृ.६५९ से ६६५ तक (ग) संकप्पो संरंभो, परितावकरो भवे समारंभो।
... आरंभो उद्दवओ, सव्वनयाणं विसुद्धाणं ॥ "कालओ" और "केवच्चिरं"ये दो एकार्थक पद देने का तात्पर्य है-कालओ-काल की अपेक्षा, केवच्चिरं-कितने काल तक।