Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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__ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र णिवाय-गंभीरा, तीसेणं कूडागार० जाव(राज० पत्र ५६) कूडागारसालादिळेंतो भाणियव्यो।
[३४-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि वह दिव्य देवऋद्धि शरीर में चली गई और शरीर में प्रविष्ट हो गई ?
[३४-२ उ.] गौतम! जैसे कोई कूटाकार (शिखर के आकार की) शाला हो, जो दोनों तरफ से लीपी हुई हो, गुप्त हो, गुप्त-द्वारवाली हो, निर्वात हो, वायुप्रवेश से रहित गम्भीर हो, यावत् ऐसी कूटाकारशाला का दृष्टान्त (यहाँ) कहना चाहिए।
विवेचन कूटाकारशाला के दृष्टान्तपूर्वक ईशानेन्द्र की ऋद्धि की प्ररूपणा—प्रस्तुत सूत्र में ईशानेन्द्र की पुनः अदृश्य हुई ऋद्धि, प्रभाव एवं दिव्यकान्ति के सम्बन्ध में श्री गौतमस्वामी द्वारा किये गए प्रश्न का भगवान् द्वारा कूटाकारशाला के दृष्टान्तपूर्वक किया गया समाधान है।
कूटाकारशाला दृष्टान्त—जैसे (पूर्वोक्त) शिखराकार कोई शाला (घर) हो और उसके पास बहुत-से मनुष्य खड़े हों, इसी बीच आकाश में बादल उमड़ घुमड़कर आ गए हों और बरसने की तैयारी हो, ऐसी स्थिति में वे तमाम मनुष्य वर्षा से रक्षा के लिए उस शाला में प्रविष्ट हो जाते हैं, इसी प्रकार ईशानेन्द्र की वह दिव्यऋद्धि, देव-प्रभाव एवं दिव्यकांति ईशानेन्द्र के शरीर में प्रविष्ट हो गई। ईशानेन्द्र का पूर्वभव : तामली का संकल्प और प्राणामाप्रव्रज्या ग्रहण
३५. ईसाणेणं भंते! देविंदेणं देवरण्णा सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवजुती दिव्वे देवाणु-भागे किण्णालद्धे ? किण्णापत्ते ? किण्णा अभिसमन्नागए ? के वा एस आसि पुव्वभवे ? किंणामए वा ? किंगोत्ते वा ? कतरंसि वा गामंसि वा नगरंसि वा जाव. सन्निवेसंसि वा ? किं वा सोच्चा ? किं वा दच्चा ? किं वा भोच्चा ? किं वा किच्चा ? किं वा समायरित्ता ? कस्स वा तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा निसम्म जं णं ईसाणेणं देविंदेणं देवरण्णा सा दिव्वा देविड्ढी जाव अभिसमन्नागया ?
एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे तामलित्ती नाम नगरी होत्था। वण्णओ। तत्थ णं तामलित्तीए नगरीए तामली नाम मोरियपुत्ते गाहावती होत्था। अड्ढे दित्ते जाव बहुजणस्स अपरिभूए यावि होत्था।
_ [३५ प्र.] भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान ने वह दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवधुति (कान्ति) और दिव्य देवप्रभाव किस कारण से उपलब्ध किया, किस कारण से प्राप्त किया और किस हेतु से अभिमुख किया ? यह ईशानेन्द्र पूर्वभव में कौन था ? इसका क्या नाम था, क्या गोत्र था? यह किस ग्राम, नगर अथवा यावत् किस सन्निवेश में रहता था ? इसने क्या सुनकर, क्या (आहार-पानी आदि) देकर, क्या (रूखा-सूखा) खाकर क्या (तप एवं शुभ ध्यानादि) करके, क्या (शीलव्रतादि या प्रतिलेखन-प्रमार्जन आदि धर्मक्रिया का) सम्यक् आचरण करके, अथवा किस तथारूप श्रमण या माहन के पास से एक भी आर्य (तीर्थंकरोक्त) एवं धार्मिक सुवचन सुनकर तथा हृदय में धारण करके (पुण्यपुंज का उपार्जन १. भगवती अ. वृत्ति, पत्रांक १६३