Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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२५० ]
धर्मास्तिकाय आदि का प्रमाण
[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
१३. [ १ ] धम्मत्थिकाए णं भंते! के महालए पण्णत्ते ?
गोमा ! लोए लोयमेत्ते लोयप्पमाणे लोयफुडे लोयं चेव फुसित्ताणं चिट्ठइ ।
[१३-१ प्र.] भगवन् ! धर्मास्तिकाय कितना बड़ा कहा गया है ?
[१३-१ उ.] गौतम ! धर्मास्तिकाय लोकरूप है, लोकमात्र है, लोक-प्रमाण है, लोकस्पृष्ट है और लोक को ही स्पर्श करके रहा हुआ है।
[२] एवं अधम्मत्थिकाए, लोयाकासे, जीवत्थिकाए, पोग्गलत्थिकाए । पंच वि एक्काभिलावा ।
[१३-२] इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय, लोकाकाश, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय के सम्बन्ध में भी समझ लेना चाहिए। इन पाँचों के सम्बन्ध में एक समान अभिलाप (पाठ) है ।
विवेचन—– धर्मास्तिकाय आदि का प्रमाण— प्रस्तुत सूत्र में धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, लोकाकाश, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय, इन पांचों को लोक-प्रमाण, लोकमात्र, लोकस्पृष्ट एवं लोकरूप आदि बताया गया है। लोक के जितने प्रदेश हैं, उतने ही धर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं । धर्मास्तिकायादि सब प्रदेश लोकाकाश के साथ स्पृष्ट हैं और धर्मास्तिकायादि अपने समस्त प्रदेशों द्वारा लोक को स्पर्श करके रहे हुए हैं ।"
धर्मास्तिकाय आदि की स्पर्शना
१४. अहोलोए णं भंते! धम्मत्थिकायस्स केवतियं फुसति!
गोयमा ! सातिरेगं अद्धं फुसति ।
[१४ प्र.] भगवन् ! धर्मास्तिकाय के कितने भाग को अधोलोक स्पर्श करता है ?
[१४ उ.] गौतम ! अधोलोक धर्मास्तिकाय के आधे से कुछ अधिक भाग को स्पर्श करता है।
१५. तिरियलोए णं भंते! ० पुच्छा ।
गोयमा! असंखेज्जइभागं फुसइ ।
[१५ प्र.] भगवन्! धर्मास्तिकाय के कितने भाग को तिर्यग्लोक स्पर्श करता है? पृच्छा० । [१५ उ.] गौतम ! तिर्यग्लोक धर्मास्तिकाय के असंख्येय भाग को स्पर्श करता है।
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१६. उड्ढलोए णं भंते!० पुच्छा ।
गोयमा! देसोणं अद्धं फुसइ ।
[१६ प्र.] भगवन्! धर्मास्तिकाय के कितने भाग को ऊर्ध्वलोक स्पर्श करता है ?
[१६ उ.] गौतम ! ऊर्ध्वलोक धर्मास्तिकाय के देशोन (कुछ कम ) अर्धभाग को स्पर्श करता है।
१. भगवतीसूत्र, अ. वृत्ति, पत्रांक १५१