Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र आदि ज्ञानसम्बन्धी अनन्तपर्यायरूप एक प्रकार के चैतन्य (उपयोग) को प्राप्त करता है। यही जीवत्व (चैतन्यशक्तिमत्ता) को प्रदर्शित करता है। आकाशास्तिकाय के भेद-प्रभेद एवं स्वरूप का निरूपण
१०. कतिविहे णं भंते! आकासे पण्णत्ते? गोयमा! दुविहे आगासे पण्णत्ते, तं जहा लोयाकासे य अलोयागासे य । [१० प्र.] भगवन् ! आकाश कितने प्रकार का कहा गया है ? [१० उ.] गौतम! आकाश दो प्रकार का कहा गया है, यथा—लोकाकाश और अलोकाकाश।
११. लोयाकासे णं भंते! किं जीवा जीवदेसा जीवपदेसा, अजीवा अजीवदेसा अजीवपएसा ?
गोयमा! जीवा वि जीवदेसा वि जीवपदेसा वि, अजीवा वि अजीवदेसा वि अजीवपदेसा वि। जे जीवा ते नियमा एगिंदिया बेइंदिया तेइंदिया चउरिदिया पंचेंदिया अणिंदिया। जे जीवदेसा ते नियमा एगिंदियदेसा जाव अणिंदियदेसा। जे जीवपदेसा ते नियमा एगिंदियपदेसा जाव अणिंदिय पदेसा। जे अजीवा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा रूवी य अरूवी य। जे रूवी ते चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा खंधा खंधदेसा खंधपदेसा परमाणु पोग्गला। जे अरूवी ते पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा–धम्मत्थिकाए, नोधम्मत्थिकायस्स देसे, धम्मत्थिकायस्स पदेसा, अधम्मत्थिकाए, नोअधम्मत्थिकायस्स देसे, अधम्मत्थिकायस्स पदेसा, अद्धासमए।
[११ प्र.] भगवन्! क्या लोकाकाश में जीव हैं ? जीव के देश हैं ? जीव के प्रदेश हैं ? क्या अजीव हैं ? अजीव के देश हैं ? अजीव के प्रदेश हैं ?
[११ उ.] गौतम! लोकाकाश में जीव भी हैं, जीव के देश भी हैं, जीव के प्रदेश भी हैं; अजीव भी हैं, अजीव के देश भी हैं और अजीव के प्रदेश भी हैं। जो जीव हैं, वे नियमतः (निश्चित रूप से) एकेन्द्रिय हैं, द्वीन्द्रिय हैं, त्रीन्द्रिय हैं,चतुरिन्द्रिय हैं, पंचेन्द्रिय हैं और अनिन्द्रिय हैं। जो जीव के देश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय के देश हैं, यावत् अनिन्द्रिय के देश हैं। जो जीव के प्रदेश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय के प्रदेश हैं, यावत् अनिन्द्रिय के प्रदेश हैं। जो अजीव हैं, वे दो प्रकार के कहे गए हैं यथारूपी और अरूपी। जो रूपी हैं, वे चार प्रकार के कहे गए हैं स्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्धप्रदेश और परमाणुपुद्गल। जो अरूपी हैं, उनके पांच भेद कहे गये हैं, वे इस प्रकार हैं-धर्मास्तिकाय, नोधर्मास्तिकाय का देश, धर्मास्तिकाय के प्रदेश, अधर्मास्तिकाय, नोअधर्मास्तिकाय का देश, अधर्मास्तिकाय के प्रदेश और अद्धासमय।
१२. अलोगागासे णं भंते! किं जीवा ? पुच्छा तह चेव (सु. ११)।
गोयमा! नो जीवा जाव नो अजीवप्पएसा। एगे अजीवदव्वदेसे अगुरुयलहुए अणंतेहिं अगुरुयलहुयगुणेहिं संजुत्ते सव्वागासे अणंतभागूणे। ___ [१२ प्र.] भगवन् ! क्या अलोकाकाश में जीव हैं, यावत् अजीवप्रदेश हैं? इत्यादि पूर्ववत् पृच्छा।
१. भगवतीसूत्र, अ. वृत्ति, पत्रांक १४९