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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र का आयाम और विष्कम्भ (लम्बाई-चौड़ाई) एक लाख योजन है। वह राजधानी जम्बू द्वीप जितनी है। उसका प्राकार (कोट) १५० योजन ऊँचा है। उसके मूल का विष्कम्भ ५० योजन है। उसके ऊपरी भाग का विष्कम्भ साढ़े तेरह योजन है। उसके कपिशीर्षकों (कंगूरों) की लम्बाई आधा योजन और विष्कम्भ एक कोस है। कपिशीर्षकों की ऊँचाई आधे योजन से कुछ कम है। उसकी एक-एक भुजा में पांच-पांच सौ दरवाजे हैं। उसकी ऊँचाई २५० योजन है। ऊपरी तल (उवारियल? घर के पीठबन्ध जैसा भाग) का आयाम और विष्कम्भ (लम्बाई-चौड़ाई) सोलह हजार योजन है। उसका परिक्षेप (घेरा) ५०५९७ योजन से कुछ विशेषोन है। यहाँ समग्र प्रमाण वैमानिक के प्रमाण से आधा समझना चाहिए। उत्तर पूर्व में सुधर्मासभा, जिनगृह, उसके पश्चात् उपपातसभा, हृद, अभिषेक सभा और अलंकारसभा; यह सारा वर्णन विजय की तरह कहना चाहिए। (यह सब भी सौधर्म-वैमानिकों से आधे-आधे प्रमाण वाले हैं।)
(गाथार्थ-) उपपात, (तत्काल उत्पन्न देव का) संकल्प, अभिषेक, विभूषणा, व्यवसाय, अर्चनिका और सिद्धायतन-सम्बन्धी गम, तथा चमरेन्द्र का परिवार और उसकी ऋद्धिसम्पन्नता; (आदि का वर्णन यहाँ समझ लेना चाहिए।)
विवेचन–असुरकुमार-राज चमरेन्द्र की सुधर्मासभा आदि का वर्णन प्रस्तुत अष्टम उद्देशक में एक सूत्र द्वारा अनेक पर्वत, द्वीप, समुद्रों के अवगाहन के पश्चात् आने वाली चमरेन्द्र की राजधानी चमरचंचा का विस्तृत वर्णन किया गया है।
उत्पातपर्वत आदि शब्दों के विशेषार्थ-तिरछालोक में जाने के लिए इस पर्वत पर आकर चमर उत्पतन करता-उड़ता है, इससे इसका नाम उत्पात पर्वत पड़ा है। मुकुन्द-मुकुन्द एकं प्रकार का वाद्य विशेष है। अभिसेयसभा अभिषेक करने का स्थान।
पद्मवरवेदिका का वर्णन श्रेष्ठ पद्मवेदिका की ऊँचाई आधा योजन, विष्कम्भ पाँच सौ धनुष है, वह सर्वरत्नमयी है। उसका परिक्षेप तिगिच्छकूट के ऊपर के भाग के परिक्षेप जितना है।
वनखण्ड वर्णन वनखण्ड का चक्रवाल-विष्कम्भ देशोन दो योजन है। उसका परिक्षेप पद्मवरवेदिका के परिक्षेप जितना है। वह काला है, काली कान्ति वाला है, इत्यादि।
उत्पातपर्वत का ऊपरितल—अत्यन्त सम एवं रमणीय है। वह भूमिभाग मुरज-मुख, मृदंगपुष्कर या सरोवरतल के समान है; अथवा आदर्श-मंडल, करतल या चन्द्रमण्डल के समान है।
प्रासादावतंसक-वह प्रासादों में शेखर अर्थात् सर्वोपरि सर्वश्रेष्ठ प्रासाद बादलों की तरह ऊँचा, और अपनी चमक-दमक के कारण हंसता हुआ-सा प्रतीत होता है। वह प्रासाद कान्ति से श्वेत
और प्रभासित है। मणि, स्वर्ण और रत्नों की कारीगरी से विचित्र है। उसका ऊपरी भाग भी सुन्दर है। उस पर हाथी, घोड़े, बैल आदि के चित्र हैं।
चमरेन्द्र का सिंहासन—यह प्रासाद के बीच में है। इस सिंहासन के पश्चिमोत्तर में, उत्तर में तथा उत्तरपूर्व में चमरेन्द्र के ६४ हजार सामानिक देवों के ६४ हजार भद्रासन हैं। पूर्व में पांच पटरानियों