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द्वितीय शतक : उद्देशक-८]
[२३७ क्खिंभेणं, पन्नासं जोयणसहस्साहं पंच य सत्ताणउए जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, सव्वप्पमाणं वेमाणियप्पमाणस्स अद्धं नेयव्वं । सभा सुहम्मा उत्तरपुरस्थिमेणं, जिणघरं, ततो उववायसभा हरओ अभिसेय० अलंकारो जहा विजयस्स।
उववाओ संकप्पो अभिसेय विभूसणा य ववसाओ। अच्चणियं सुहगमो वि य चमर परिवार इड्ढत्तं ॥१॥
॥बितीय सए अट्ठमो उद्देसो समत्तो॥ [१ प्र.] भगवन्! असुरकुमारों के इन्द्र, और उनके राजा चमर की सुधर्मा-सभा कहाँ पर है ?
[१ उ.] गौतम! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मध्य में स्थित मन्दर (मेरु) पर्वत से दक्षिण दिशा में तिरछे असंख्य द्वीपों और समुद्रों को लांघने के बाद अरुणवर द्वीप आता है। उस द्वीप की वेदिका के बाहरी किनारे से आगे बढ़ने पर अरुणोदय नामक समुद्र आता है। इस अरुणोदय समुद्र में बयालीस लाख योजन जाने के बाद उस स्थान में असुरकुमारों के इन्द्र, असुरकुमारों के राजा चमर का तिगिच्छकूट नामक उत्पात पर्वत है। उसकी ऊँचाई १७२१ योजन है। उसका उद्वेध (जमीन में गहराई) ४३० योजन
और एक कोस है। इस पर्वत का नाप गोस्तुभ नामक आवासपर्वत के नाप की तरह जानना चाहिए। विशेष बात यह है कि गोस्तुभ पर्वत के ऊपर के भाग का जो नाप है, वह नाप यहाँ बीच के भाग का समझना चाहिए। (अर्थात् तिगिच्छकूट पर्वत का विष्कम्भ मूल में १०२२ योजन है, मध्य में ४२४ योजन है और ऊपर का विष्कम्भ ७२३ योजन है। उसका परिक्षेप मूल में ३२३२ योजन से कुछ विशेषोन है, मध्य में १३४१ योजन तथा कुछ विशेषोन है और ऊपर का परिक्षेप २२८६ योजन तथा कुछ विशेषाधिक है।) वह मूल में विस्तृत है, मध्य में संकीर्ण (संकड़ा) है और ऊपर फिर विस्तृत है। उसके बीच का भाग उत्तम वज्र जैसा है, बड़े मुकुन्द के संस्थान का-सा आकार है । पर्वत पूरा रत्नमय है, सुन्दर है, यावत् प्रतिरूप है।
वह पर्वत एक पद्मवरवेदिका से और एक वनखण्ड से चारों ओर से घिरा हुआ है। (यहाँ वेदिका और वनखण्ड का वर्णन करना चाहिए)।
उस तिगिच्छकूट नामक उत्पातपर्वत का ऊपरी भू-भाग बहुत ही सम एवं रमणीय है। (उसका भी वर्णन यहाँ जान लेना चाहिए।) उस अत्यन्त सम एवं रमणीय ऊपरी भूमिभाग के ठीक बीचोंबीच एक महान् प्रासादावतंसक (श्रेष्ठ महल) है। उसकी ऊँचाई २५० योजन है और उसका विष्कम्भ १२५ योजन है। (यहाँ उस प्रासाद का वर्णन करना चाहिए; तथा प्रासाद के सबसे ऊपर की भूमि [अट्टालिका] का वर्णन करना चाहिए।) आठ योजन की मणिपीठिका है। (यहाँ चमरेन्द्र के सिंहासन का सपरिवार वर्णन करना चाहिए।)
__उस तिगिच्छकूट के दक्षिण की ओर अरुणोदय समुद्र में छह सौ पचपन करोड़, पैंतीस लाख, पचास हजार योजन तिरछा जाने के बाद नीचे रत्नप्रभापृथ्वी का ४० हजार योजन भाग अवगाहन करने के पश्चात् यहाँ असुरकुमारों के इन्द्र-राजा चमर की चमरचंचा नाम की राजधानी है। उस राजधानी