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दसमो उद्देसो : अस्थिकाय
दशम उद्देशक : अस्तिकाय अस्तिकाय : स्वरूप प्रकार एवं विश्लेषण
१. कति णं भंते! अत्थिकाया पण्णत्ता ?
गोयमा! पंच अस्थिकाया पण्णत्ता, तं जहा-धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगासत्थिकाए जीवत्थिकाए पोग्गलत्थिकाए।
[१ प्र.] भगवन् ! अस्तिकाय कितने कहे गए हैं ?
[१ उ.] गौतम! अस्तिकाय पांच कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं—धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय।
२. धम्मत्थिकाए णं भंते! कतिवण्णे कतिगंधे कतिफासे ? ... गोयमा! अवण्णे अगंधे अरसे अफासे अरूवी अजीवे सासते अवट्ठिते लोगदव्वे। से समासतो पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा—दव्वतो खेत्ततो कालतो भावतो गुणतो। दव्वतो णं धम्मत्थिकाए एगे दव्वे। खेत्ततो णं लोगप्पमाणमेत्ते। कालतो न कदायि न आसि, न कयाइ नत्थि, जाव निच्चे। भावतो अवण्णे अगंधे अरसे अफासे। गुणतो गमणगुणे।
[२ प्र.] भगवन् ! धर्मास्तिकाय में कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श हैं?
[२ उ.] गौतम! धर्मास्तिकाय वर्णरहित, गन्धरहित, रसरहित और स्पर्शरहित है, अर्थात् धर्मास्तिकाय अरूपी है, शाश्वत है, अवस्थित लोक (प्रमाण) द्रव्य है।
संक्षेप में धर्मास्तिकाय पांच प्रकार का कहा गया है—द्रव्य से (धर्मास्तिकाय), क्षेत्र से (धर्मास्तिकाय), काल से (धर्मास्तिकाय), भाव से (धर्मास्तिकाय) और गुण से (धर्मास्तिकाय)। धर्मास्तिकाय द्रव्य से एक द्रव्य है, क्षेत्र से धर्मास्तिकाय लोकप्रमाण है, काल की अपेक्षा धर्मास्तिकाय कभी नहीं था, ऐसा नहीं; कभी नहीं है, ऐसा नहीं; और कभी नहीं रहेगा, ऐसा भी नहीं; किन्तु वह था, है और रहेगा, यावत् वह नित्य है। भाव की अपेक्षा धर्मास्तिकाय वर्णरहित, गन्धरहित, रसरहित और स्पर्शरहित है। गुण की अपेक्षा धर्मास्तिकाय गतिगुण वाला (गतिपरिणत जीवों और पुद्गलों के गमन में सहायक-निमित्त) है।
३. अधम्मत्थिकाए वि एवं चेव। नवरं गुणतो ठाणगुणे।
[३] जिस तरह धर्मास्तिकाय का कथन किया गया है, उसी तरह अधर्मास्तिकाय के विषय में भी कहना चाहिए; किन्तु इतना अन्तर है कि अधर्मास्तिकाय गुण की अपेक्षा स्थिति गुण वाला (जीवोंपुद्गलों की स्थिति में सहायक) है।
४. आगासत्थिकाए वि एवं चेव। नवरं खेत्तओ णं आगासत्थिकाए लोया