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द्वितीय शतक : उद्देशक - ९]
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अर्थात् मानुषोत्तर पर्वत तक मनुष्यक्षेत्र कहलाता है। जहाँ तक अरिहन्त, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेव, साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका और मनुष्य हैं, वहाँ तक मनुष्यलोक कहलाता है । जहाँ तक समय, आवलिका आदि काल है, स्थूल अग्नि है, आकर, निधि, नदी, उपराग (चन्द्रसूर्यग्रहण) है, चन्द्र, सूर्य, तारों का अतिगमन (उत्तरायण) और निर्गमन (दक्षिणायन) है तथा रात्रि - दिन का बढ़ना-घटना इत्यादि है, वहाँ तक समयक्षेत्र - मनुष्यक्षेत्र है । १
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॥ द्वितीय शतक : नवम उद्देशक समाप्त ॥
भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक १४७ (ख) जीवाभिगमसूत्र, क. आ. ७९२-८०३