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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[३९] इसके बाद स्कन्दक अनगार ने श्रमण भगवन् महावीर के तथारूप स्थविरों से सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। शास्त्र - अध्ययन करने के बाद श्रमण भगवान् महावीर के पास आकर वन्दना - नमस्कार करके इस प्रकार बोले—' भगवन्! आपकी आज्ञा हो तो मैं मासिकी भिक्षुप्रतिमा अंगीकार करके विचरना चाहता हूँ। '
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(भगवान्) हे देवानुप्रिय ! जैसे तुम्हें सुख हो, वैसा करो। शुभ कार्य में प्रतिबन्ध न करो ( रुकावट न डालो) ।
४०. तए णं से खंदए अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे हट्ट जाव नमंसित्ता मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ।
[४०] तत्पचात् स्कन्दक अनगार श्रमण भगवान् महावीर की आज्ञा प्राप्त करके अतीव हर्षित हुए और यावत् भगवान् महावीर को नमस्कार करके मासिक भिक्षुप्रतिमा अंगीकार करके विचरण करने लगे ।
४१. [१] तए णं से खंदए अणगारे मासियं भिक्खुपडिमं अहासुतं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं अहासम्मं कारण फासेति पालेति सोहेति तीरेति पूरेति किट्टेति अणुपालेइ आणाए आराहेइ, कारण फासित्ता जाव आराहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, २ समणं भगवं जाव नमंसित्ता एवं वयासी— इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे दोमासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए ।
अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं० । [२] तं चेव ।
[४१] तदनन्तर स्कन्दक अनगार ने सूत्र के अनुसार, मार्ग के अनुसार, यथातत्त्व (सत्यतापूर्वक), सम्यक् प्रकार से स्वीकृत मासिक भिक्षुप्रतिमा का काया से स्पर्श किया, पालन किया, उसे शोभित (शुद्धता से आचरण = शोधित) किया, पार लगाया, पूर्ण किया, उसका कीर्तन (गुणगान ) किया, अनुपालन किया, और आज्ञापूर्वक आराधन किया। उक्त प्रतिमा का काया से सम्यक् स्पर्श करके यावत् उसका आज्ञापूर्वक आराधन करके जहाँ श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे, वहाँ आए और श्रमण भगवान् महावीर को यावत् वन्दन - नमस्कार करके यों बोले—' भगवन्! आपकी आज्ञा हो तो मैं द्विमासिकी भिक्षुप्रतिमा स्वीकार करके विचरण करना चाहता हूँ ।'
इस पर भगवान ने कहा-' देवानुप्रिय ! तुम्हें जैसे सुख हो वैसा करो, शुभकार्य में विलम्ब
न करो।'
[४१-२] तत्पश्चात् स्कन्दक अनगार ने द्विसासिक भिक्षुप्रतिमा को स्वीकार किया । ( सभी वर्णन पूर्ववत् कहना), यावत् सम्यक् प्रकार से आज्ञापूर्वक आराधन किया।
४२. एवं तेमासियं चाउम्मासियं पंच-छ-सत्तमा० । पढमं सत्तराइंदियं, दोच्चं सत्तरइंदियं, तच्चं सत्तरातिंदियं, रातिंदियं, एगराइयं ।
[४२] इसी प्रकार त्रैमासिकी, चातुर्मासिकी, पंचमासिकी, षाण्मासिकी एवं सप्तमासिकी भिक्षुप्रतिमा