Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तइओ उद्देसो : पुढवी तृतीय उद्देशक : पृथ्वी
सप्त नरकपृथ्वियाँ तथा उनसे सम्बन्धित वर्णन १ –कति णं भंते! पुढवीओ पण्णत्ताओ ? जीवाभिगमे नेरइयाणं जो बितिओ उद्देसो सो नेयव्वो ।
पुढवी ओगाहित्ता निरया संठाणमेव बाहल्लं । जाव किं सव्वे पाणा उववन्नपुव्वा ? हंता, गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो ।
॥ बितीय सए तइओ उद्देसो समत्ते ॥
[१ प्र.] भगवन् ! पृथ्वियाँ कितनी कही गई हैं ?
[१ उ.] गौतम! जीवाभिगमसूत्र में नैरयिकों का दूसरा उद्देशक कहा है, उसमें पृथ्वी सम्बन्धी (नरकभूमि से सम्बन्धित) जो वर्णन है, वह सब यहाँ जान लेना चाहिए। वहाँ (पृथ्वियों के भेद के उपरान्त) उनके संस्थान, मोटाई आदि का तथा यावत् अन्य जो भी वर्णन है, वह सब यहाँ कहना चाहिए ।
[प्र.] भगवन्! क्या सब जीव उत्पन्नपूर्व हैं ? अर्थात् सभी जीव पहले रत्नप्रभा आदि पृथ्वियों में उत्पन्न हुए हैं ?
[उ.] हाँ, गौतम ! सभी जीव रत्नप्रभा आदि नरकपृथ्वियों में अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चुके हैं। यावत् यहाँ जीवाभिगमसूत्र का पृथ्वी- उद्देशक कहना चाहिए।
विवेचन सप्त नरक पृथ्वियाँ तथा उनसे सम्बन्धित वर्णन—प्रस्तुत उद्देशक में एक सूत्र के द्वारा जीवाभिगम सूत्रोक्त नरकपृथ्वियों सम्बन्धी समस्त वर्णन का निर्देश कर दिया गया है। संग्रहगाथा —–—–— जीवाभिगमसूत्र के द्वितीय उद्देशक में पृथ्वियों के वर्णनसम्बन्धी संग्रहगाथा इस प्रकार दी गई है—
१.
२.
" पुढवी ओगाहित्ता णिरया, संठाणमेव बाहल्लं । २ विक्खंभ - परिक्खेवो, वण्णो गंधो यं फासो य ॥"
अर्थात् – (१) पृथ्वियाँ सात हैं, रत्नप्रभा आदि, (२) कितनी दूर जाने पर नरकावास हैं? रत्नप्रभा पृथ्वी की मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजन है, उसमें से एक-एक हजार योजन ऊपर और नीचे छोड़कर बीच के १,७८,००० योजन में ३० लाख नरकावास हैं। शर्कराप्रभा की मोटाई १,३२,००० योजन, बालुकाप्रभा की १,२८,००० योजन, पंकप्रभा की १,२०,००० योजन, धूमप्रभा की १,१८,०००
भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक १३०
यह आधी गाथा मल पाठ में भी है।