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[२६-२ उ.] गौतम ! श्रवण का फल ज्ञान है (अर्थात् — शास्त्र - श्रवण से ज्ञानलाभ होता है) । [ ३ ] से णं भंते! नाणे किंफले ?
विण्णाणफले ।
[२६-३ प्र.] भगवन् ! उस ज्ञान का क्या फल है ?
[२६-३ उ.] गौतम! ज्ञान का फल विज्ञान है (अर्थात् — ज्ञान से हेय और उपादेय तत्त्व विवेक की प्राप्ति होती है ।)
[ ४ ] से णं भंते! विण्णाणे किंफले ?
पच्चक्खाणफले ।
[२६-४ प्र.] भगवन् ! उस विज्ञान का क्या फल होता है ?
[२६-४ उ.] गौतम ! विज्ञान का फल प्रत्याख्यान (हेय पदार्थों का त्याग ) है ।
[५] से णं भंते! पच्चक्खाणे किंफले ?
संजमफले ।
[२६ - ५ प्र.] भगवन् ! प्रत्याख्यान का क्या फल होता है ?
[२६-५ उ.] गौतम! प्रत्याख्यान का फल संयम (सर्वसावद्य त्यागरूप संयम अथवा पृथ्वीकायादि १७ प्रकार का संयम ) है ।
[ ६ ] से णं भंते! संजमे किंफले ?
अणण्यफले ।
[२६-६ प्र.] भगवन् ! संयम का क्या फल होता है ?
[२६-६ उ.] गौतम ! संयम का फल अनाश्रवत्व (संवर नवीन कर्मों का निरोध) है।
[ ७ ] एवं अणण्हये तवफले । तवे वोदाणफले। वोदाणे अकिरियाफले ।
[२६-७] इसी तरह अनाश्रवत्व का फल तप है, तप का फल व्यवदान ( कर्मनाश) है और व्यवदान का फल अक्रिया है ।
[८] से णं भंते! अकिरिया किंफला ? सिद्धिपज्जवसाणफला पण्णत्ता गोयमा ! गाहा—
सवणे णाणे य विण्णाणे पच्चक्खाणे य संजमे ।
अणण्हये तवे चेव वोदाणे अकिरिया सिद्धी ॥ १ ॥
[ २६-८ प्र.] भगवन् ! उस अक्रिया का क्या फल है ?
[२६-८ उ.] गौतम! अक्रिया का अन्तिम फल सिद्धि है । (अर्थात् अक्रियता ——— अयोगी