Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [२६-२ प्र.] भगवन्! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि यावत् जीव और पुद्गल इस प्रकार रहे हुए हैं ?
[२६-२ उ.] गौतम! जैसे कोई एक तालाब हो, वह जल से पूर्ण हो, पानी से लबालब भरा हुआ हो, पानी से छलक रहा हो और पानी से बढ़ रहा हो, वह पानी से भरे हुए घड़े के समान है। उस तालाब में कोई पुरुष एक ऐसी बड़ी नौका, जिसमें सौ छोटे छिद्र हों (अथवा सदा छेदवाली) और सौ बड़े छिद्र हों; डाल दे तो हे गौतम! वह नौका, उन-उन छिद्रों द्वारा पानी से भरती हुई, अत्यन्त भरती हुई, जल से परिपूर्ण, पानी से लबालब भरी हुई, पानी से छलकती हुई, बढ़ती हुई क्या भरे हुए घड़े के समान हो जायेगी?
(गौतम) हाँ, भगवन्! हो जायेगी।
(भगवान्-) इसलिए हे गौतम! मैं कहता हूँ यावत् जीव और पुद्गल परस्पर घटित हो कर रहे हुए हैं।
विवेचन-जीव और पुद्गलों का सम्बन्ध प्रस्तुत सूत्र में जीव और पुद्गलों के परस्पर गाढ़ सम्बन्ध को दृष्टान्त द्वारा समझाया गया है।
जीव और पुद्गलों का सम्बन्ध तालाब और नौका के समान—जैसे कोई व्यक्ति जल से परिपूर्ण तालाब में छिद्रों वाली नौका डाले तो उन छिद्रों से पानी भरते-भरते नौका जल में डूब जाती है
और तालाब के तलभाग में जा कर बैठ जाती है। फिर जिस तरह नौका और तालाब का पानी एकमेक हो कर रहते हैं, वैसे ही जीव और (कर्म) पुद्गल परस्पर सम्बद्ध एवं एकमेक होकर रहते हैं। इसी प्रकार संसार रूपी तालाब के पुद्गलरूपी जल में जीव रूपी सछिद्र नौका डूब जाने पर पुद्गल और जीव एकमेक हो जाते हैं। सूक्ष्मस्नेहकायपात सम्बन्धी प्ररूपणा
२७[१] अस्थि णं भंते! सदा समितं सुहमे सिणेहकाये पवडति ? हंता, अत्थि।
[२७-१ प्र.] भगवन्! क्या सूक्ष्म स्नेहकाय (एक प्रकार का सूक्ष्म जल, सदा परिमित (सपरिमाण) पड़ता है ?
[२७-१ उ.] हाँ, गौतम! पड़ता है। [२] से भंते! किं उड्डे पवडति, अहे पवडति तिरिए पवडति ? गोतमा! उड्डे वि पवडति, अहे वि पवडति, तिरिए वि पवडति। [२७-२ प्र.] भगवन् ! वह सूक्ष्म स्नेहकाय ऊपर पड़ता है, नीचे पड़ता है या तिरछा पड़ता है ?
[२७-२ उ.] गौतम! वह ऊपर (ऊर्ध्वलोक में वर्तुल वैताढ्यादि में) भी पड़ता है, नीचे (अधोलोकग्रामों में) भी पड़ता है और तिरछा (तिर्यग्लोक में) भी पड़ता है। १. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक ८२