Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
१६८]
[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र जीवसामान्य और एकेन्द्रियों के सम्बन्ध में इस प्रकार कहना चाहिए कि यदि व्याघात न हो तो वे सब दिशाओं से बाह्य और आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास के लिए पुद्गलों को ग्रहण करते हैं। यदि व्याघात हो तो कदाचित् तीन दिशा से, कदाचित् चार दिशा से, और कदाचित् पांच दिशा से श्वासोच्छ्वास के पुद्गलों को ग्रहण करते हैं । शेष सब जीव नियम से छह दिशा से श्वासोच्छ्वास के पुद्गलों को ग्रहण करते हैं।
__विवेचन—एकेन्द्रियादि जीवों में श्वासोच्छ्वास सम्बन्धी प्ररूपणा–प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. २ से ५ तक) में एकेन्द्रिय जीवों, नारकों आदि के श्वासोच्छ्वास के सम्बन्ध में शंका-समाधान प्रस्तुत किया गया है।
आणमंति पाणमंति उस्ससंति नीससंति-वृत्तिकार ने आण-प्राण और ऊस-नीस इन दोनोंदोनों को एकार्थक माना है। किन्तु आचार्य मलयगिरि ने प्रज्ञापनावृत्ति में अन्य आचार्य का मत देकर इनमें अन्तर बताया है—आणमंति और प्राणमन्ति ये दोनों अन्तःस्फुरित होने वाली उच्छ्वासनि:श्वासक्रिया के अर्थ में, तथा उच्छ्वसन्ति और निःश्वसन्ति ये दोनों बाह्यस्फुरित उच्छ्वासनिःश्वासक्रिया के अर्थ में ग्रहण करना चाहिए (प्रज्ञापना-म.-वृत्ति, पत्रांक २२०)।
एकेन्द्रिय जीवों के श्वासोच्छ्वाससम्बन्धी शंका क्यों ? यद्यपि आगमादि प्रमाणों से पृथ्वी-कायादि एकेन्द्रियों में चैतन्य सिद्ध है और जो जीव है, वह श्वसोच्छ्वास लेता ही है, यह प्रकृतिसिद्ध नियम है, तथापि यहाँ एकेन्द्रिय जीवों के श्वासोच्छ्वास सम्बन्धी शंका का कारण यह है कि मेंढक आदि कतिपय जीवित जीवों का शरीर कई बार बहुत काल तक श्वासोच्छ्वास-रहित दिाई देता है, इसलिए स्वभावत: इस प्रकार की शंका होती है कि पृथ्वीकाय आदि के जीव भी क्या इसी प्रकार के हैं या मनुष्यादि की तरह श्वसोच्छ्वास वाले हैं? क्योंकि पृथ्वीकायादि स्थावर जीवों का श्वासोच्छ्वास मनुष्य आदि की तरह दृष्टिगोचर नहीं होता। इसी का समाधान भगवान् ने किया है। वास्तव में, बहुत लम्बे समय में श्वासोच्छ्वास लेने वालों को भी किसी समय में तो श्वासोच्छ्वास लेना ही पड़ता है।
श्वासोच्छ्वास-योग्य पुद्गल प्रज्ञापनासूत्र में बताया गया है कि वे पुद्गल दो वर्ण वाले, तीन वर्ण वाले, यावत् पाँच वर्ण वाले होते हैं। वे एक गुण काले यावत् अनन्तगुण काले होते हैं।
__व्याघात-अव्याघात–एकेन्द्रिय जीव लोक के अन्त भाग में भी होते हैं, वहाँ उन्हें अलोक द्वारा व्याघात होता है। इसलिए वे तीन, चार या पाँच दिशाओं से ही श्वसोच्छ्वास योग्य पुद्गल ग्रहण करते हैं, किन्तु व्याघातरहित जीव (नैरयिक आदि) सनाड़ी के अन्दर ही होते हैं, अतः उन्हें व्याघात न होने से वे छहों दिशाओं से श्वासोच्छ्वास-पुद्गल ग्रहण कर सकते हैं। वायुकाय के श्वासोच्छ्वास, पुनरुत्पत्ति, मरण एवं शरीरादि सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
६. वाउयाए णं भंते! वाउयाए चेव आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा?
हंता, गोयमा! वाउयाए णं वाउयाए जाव नीससंति वा। [६ प्र.] हे भगवन्! क्या वायुकाय, वायुकायों को ही बाह्य और आभ्यन्तर उच्छ्वास और
१.(क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक १०९