Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
तिन्हं परमाणुपोग्गलाणं अत्थि सिणेहकाए, तम्हा तिण्णि परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति; ते भिज्जमाणा दुहा वि तिहा वि कज्जंति, दुहा कज्जमाणा एगयओ परमाणुपोग्गले, एकयओ दुपदेसिए खंधे भवति, तिहा कज्जमाणा तिण्णि परमाणुपोग्गला भवंति । एवं जाव चत्तारि पंच परमाणुपोग्गला एगयओ साहन्नंति, साहन्नित्ता खंधत्ताए कज्जंति, खंधे विय णं से असासते सया समियं उवचिज्जइ य अवचिज्जइ य ।
१६०]
पुवि भासा अभासा, भासिज्जमाणी भासा भासा, भासासमयवीतिक्कंतं च णं भासिता भासा अभासा; जा सा पुवि भासा अभासा, भासिज्जमाणी भासा भासा, भासासमयवीतिक्कंतं चणं भासिता भासा अभासा, सा किं भासतो भासा अभासओ भासा ?
भासओ णं सा भासा, नो खलु सा अभासओ भासा । पुव्वि किरिया अदुक्खा जहा भासा तहा भाणितव्वा किरिया वि जाव करणतो णं सा दुक्खा, नो खलु सा अकरणओ दुक्खा, सेवं वत्तवं सिया । किच्चं दुक्खं, फुसं दुक्खं, कज्जमाणकडं दुक्खं कट्टु कट्टु पाण-भूत - जीव-सत्ता वेदणं वेदेंतीति वत्तव्वं सिया ।
[१ प्र.] भगवन्! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत् इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं कि 'जो चल रहा है, वह अचलित है— चला नहीं कहलाता और यावत्— जो निर्जीर्ण हो रहा है, वह निर्जीर्ण नहीं कहलाता ।'
'दो परमाणुपुद्गल एक साथ नहीं चिपकते ।' दो परमाणुपुद्गल एक साथ क्यों नहीं चिपकते ? इसका कारण यह है कि दो परमाणुपुद्गलों में चिकनापन (स्निग्धता) नहीं होती इसलिए 'दो परमाणुपुद्गल एक साथ नहीं चिपकते ।'
'तीन परमाणुपुद्गल एक दूसरे से चिपक जाते हैं।' तीन परमाणुपुद्गल परस्पर क्यों चिपक जाते हैं ? इसका कारण यह है कि तीन परमाणुपुद्गलों में स्निग्धता ( चिकनाहट) होती है; इसलिए तीन परमाणु-पुद्गल आपस में चिपक जाते हैं । यदि तीनों परमाणु- पुद्गलों का भेदन (भाग) किया जाए तो दो भाग भी हो सकते हैं, एवं तीन भाग भी हो सकते हैं। अगर तीन परमाणु- पुद्गलें के दो भाग किये जाएँ तो एक तरफ डेढ़ परमाणु होता है और दूसरी तरफ भी डेढ़ परमाणु होता है। यदि तीन परमाणुपुद्गलों के तीन भाग किये जाएँ तो एक-एक करके तीन परमाणु अलग-अलग हो जाते हैं। इसी प्रकार यावत् चार परमाणु- पुद्गलों के विषय में समझना चाहिए।
“पाँच परमाणुपुद्गल परस्पर चिपक जाते हैं और वे दुःखरूप (कर्मरूप ) " में परिणत होते हैं। वह दुःख (कर्म) भी शाश्वत है, और सदा सम्यक् प्रकार से उपचय को प्राप्त होता है और अपचय को प्राप्त होता है । '
'बोलने से पहले की जो भाषा (भाषा के पुद्गल) है, वह भाषा है। बोलते समय की भाषा अभाषा है और बोलने का समय व्यतीत हो जाने के बाद की भाषा, भाषा है।'
[प्र.] 'यह जो बोलने से पहले की भाषा, भाषा है और बोलते समय की भाषा, अभाषा है तथा बोलने के समय के बाद की भाषा, भाषा है; सो क्या बोलते हुए पुरुष की भाषा है या न बोलते हुए पुरुष की भाषा है ?"