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प्रथम शतक : उद्देशक-८]
[१३७ तल्लीन कोई पुरुष मृगवध के लिए निकला हुआ कच्छ (नदी के पानी से घिरे हुए झाड़ियों वाले स्थान) में, द्रह में, जलाशय में, घास आदि में समूह में, वलय (गोलाकार नदी आदि के पानी से टेढ़े-मेढ़े स्थान) में, अन्धकारयुक्त प्रदेश में, गहन (वृक्ष, लता आदि झुंड से सघन वन) में, पर्वत के एक भागवर्ती वन में, पर्वत पर पर्वतीय दुर्गम प्रदेश में, वन में, बहुत-से वृक्षों से दुर्गम वन में, 'ये मृग हैं' ऐसा सोच कर किसी मृग को मारने के लिए कूटपाश रचे (गड्ढा बना कर जाल फैलाए) ते हे भगवन्! वह पुरुष कितनी क्रियाओं वाला कहा गया है ? अर्थात्-उसे कितनी क्रियाएँ लगती हैं ?
[४ उ.] हे गौतम! वह पुरुष कच्छ में, यावत्-जाल फैलाए तो कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला और कदाचित् पांच क्रिया वाला होता है।
[प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि 'वह पुरुष कदाचित् तीन क्रियाओं वाला, कदाचित् चार क्रियाओं वाला और कदाचित् पांच क्रियाओं वाला होता है ?'
_ [उ.] गौतम! जब तक वह पुरुष जाल को धारण करता है, और मृगों को बांधता नहीं है तथा मगों को मारता नहीं है. तब तक वह परुष कायिकी. आधिकरणिकी और प्राद्वेषिकी, इन तीन क्रियाओं से स्पृष्ट (तीन क्रियाओं वाला) होता। जब तक वह जाल को धारण किये हुए है और मृगों को बांधता है किन्तु मारता नहीं; तब तक वह पुरुष कायिकी आधिकरण्किी, प्राद्वेषिकी, और पारितापनिकी, इन चार क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जब वह पुरुष जाल को धारण किये हुए है, मृगों को बांधता है और मारता है, तब वह–कायिकी, आधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी और प्राणातिपातिकी, इन पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। इस कारण हे गौतम! वह पुरुष कदाचित् तीन क्रियाओं वाला, कदाचित् चार क्रियाओं वाला और कदाचित् पांचों क्रियाओं वाला कहा जाता है।
५. पुरिसे णं भंते! कच्छंसि वा जाव वणविदुग्गंसि वा तणाई ऊसविय ऊसविय अगणिकायं निसिरइ तावं च णं भंते! से पुरिसे कतिकिरिए ?
गोयमा! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए। से केणढेणं?
गोतमा! जे भविए उस्सवणयाए तिहिं; उस्सवणयाए वि निसिरणयाए वि, नो दहणयाए चउहिं; जे भविए उस्सवणयाए वि निसिरणयाए वि दहणयाए वि तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुढें। से तेणढेणं गोयमा !०।
[५ प्र.] भगवन्! कच्छ में यावत् वनविदुर्ग (अनेक वृक्षों के कारण दुर्गम वन) में कोई पुरुष घास के तिनके इकट्ठे करके और उनमें अग्नि डाले तो वह पुरुष कितनी क्रिया वाला होता है ?
[५ उ.] गौतम! वह पुरुष कदाचित् तीन क्रियाओं वाला, कदाचित् चार क्रियाओं वाला और कदाचित् पांच क्रियाओं वाला होता है।
[प्र.] भगवान् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ?
[उ.] गौतम! जब तक वह पुरुष तिनके इकट्ठे करता है, तब तक वह तीन क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जब वह तिनके इकट्ठे कर लेता है, और उनमें अग्नि डालता है, किन्तु जलाता नहीं है, तब तक