Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम शतक : उद्देशक-८]
[१४३ [११-४] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के विषय में नैरयिकों के समान क.थन समझना चाहिए।
हे भगवन्! यह इसी प्रकार है, यह इसी प्रकार है; यों कह कर श्री गौतमस्वामी संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे।
विवेचन-जीवों के सवीर्यत्व-अवीर्यत्व सम्बन्धी प्ररूपण प्रस्तुत दो सूत्रों में सामान्य जीवों तथा नैरयिक आदि से लेकर वैमानिक तक चौबीस दण्डकों के जीवों का सवीर्य-अवीर्य सम्बन्धी निरूपण किया गया है।
अनन्तवीर्य सिद्ध : अवीर्य कैसे?—सिद्धों में सकरणवीर्य के अभाव की अपेक्षा से उन्हें अवीर्य कहा गया है; क्योंकि सिद्ध कृतकृत्य हैं, उन्हें किसी प्रकार का पुरुषार्थ करना शेष नहीं है। अकरणवीर्य की अपेक्षा से सिद्ध सवीर्य (अनन्तवीर्य) हैं ही।
शैलेशी शब्द की व्याख्याएँ (१) शीलेश का अर्थ है-सर्वसंवररूपचारित्र में समर्थ (प्रभु)। उसकी यह अवस्था (२) अथवा शैलेश-मेरुपर्वत, उसकी तरह निष्कम्प-स्थिर अवस्था (३) अथवा सैल (शैल) + इसी (ऋषि) = शैल की तरह चारित्र में अविचल ऋषि की अवस्था; (४) सेऽलेसी-सालेश्यी-लेश्यारहित स्थिति।
॥प्रथम शतक : अष्टम उद्देशक समाप्त।
भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक ९५. विशेषावश्यक भाष्य गाथा ३६६३-६४, पृ.७२८