Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम शतक : उद्देशक-९]
[१४५ विवेचन-जीवों का गुरुत्व-लघुत्व—प्रस्तुत त्रिसूत्री में जीवों के गुरुत्व-लघुत्व के कारण अष्टादशपाप-सेवन तथा अष्टादशपाप-विरमण को बताकर साथ ही लघुत्व आदि चार की प्रशस्तता एवं गुरुत्व आदि चार की अप्रशस्तता भी प्रतिपादित की गई है।
चार प्रशस्त और चार अप्रशस्त क्यों?—इन आठों में से लघुत्व, परीतत्व ह्रस्वत्व और व्यतिव्रजन, ये चार दण्डक प्रशस्त हैं; क्योंकि ये मोक्षांग हैं; तथा गुरुत्व, आकुलत्व, दीर्घत्व और अनुपरिवर्तन, ये चार दण्डक अप्रशस्त हैं, क्योंकि ये अमोक्षांग (संसारांग) हैं। पदार्थों के गुरुत्व लघुत्व आदि की प्ररूपणा
४. सत्तमे णं भंते! ओवासंतरे किं गरुए, लहुए, गरुयलहुए, अगरुयलहुए ? गोयमा! नो गरुए, नो लहुए, नो गरुयलहुए, अगरुयलहुए ।
[४ प्र.] भगवन्! क्या सातवां अवकाशान्तर गुरु है, अथवा वह लघु है, या गुरुलघु है, अथवा अगुरुलघु है ?
[४ उ.] गौतम! वह गुरु नहीं है, लघु नहीं, गुरु-लघु नहीं है, किन्तु अगुरुलघु है। .५.[१] सत्तमे णं भंते! तणुवाते किं गरुए, लहुए गरुयलहुए, अगरुयलहुए ? गोयमा! नो गरुए, नो लहुए, गरुयलहुए, नो अगरुयलहुए। [५-१ प्र.] भगवन् ! सप्तम तनुवात क्या गुरु है, लघु है या गुरुलघु है अथवा अगुरुलघु है ? [५-१ उ.] गौतम! वह गुरु नहीं है, लघु नहीं है, किन्तु गुरु-लघु है; अगुरुलघु नहीं है। [२] एवं सत्तमे घणवाए, सत्तमे घणोदही, सत्तमा पुढवी।
[५-२] इसी प्रकार सप्तम घनवात, सप्तम घनोदधि और सप्तम पृथ्वी के विषय में भी जानना चाहिए।
[३]ओवासंतराइं सव्वाईजहा सत्तमे ओवासंतरे (सु. ४)।
[५-३] जैसा सातवें अवकाशान्तर के विषय में कहा है, वैसा ही सभी अवकाशान्तरों के विषय में समझना चाहिए।
[४][सेसा] जहा तणुवाए। एवं ओवास वाय घणउदहि पुढवी दीवा य सागरा वासा।
[५-४] तनुवात के विषय में जैसा कहा है, वैसा ही सभी घनवात, घनोदधि, पृथ्वी, द्वीप, समुद्र और क्षेत्रों के विषय में भी जानना चाहिए।
६. [१] नेरइया णं भंते! किं गरुया जाव अगरुयलहुया ? गोयमा! नो गरुया, नो लहुया, गरुयलहुया वि, अगरुयलहुया वि।
भगवतीसूत्र अ. वृत्ति. पत्रांक ९६.