________________
प्रथम शतक : उद्देशक-८]
[ १३९ हंता, भगवं ! कज्जमाणे कडे जाव निसट्टे त्ति वत्तव्वं सिया।
से तेणढेणं गोयमा! जे मियं मारेति से मियवेरेणं पुढे जे पुरिसं मारेइ से पुरिसवेरेणं 'पुढे। अंतो छण्हं मासाणं मरइ काइयाए जाव पंचहिं किरियाहिं पुढे बाहिं छण्हं मासाणं मरति काइयाए जाव पारितावणियाए चउहि किरियाहिं पुढें।।
[७ प्र.] भगवन्! कोई पुरुष, कच्छ में यावत् किसी मृग का वध करने के लिए कान तक ताने (लम्बे किये) हुए बाण को प्रयत्नपूर्वक खींच कर खड़ा हो और दूसरा कोई पुरुष पीछे से आकर उस खड़े हुए पुरुष का मस्तक अपने हाथ से तलवार द्वारा काट डाले। वह बाण पहले के खिंचाव से उछल कर उस मृग को बींध डाले, तो हे भगवन्! वह पुरुष मृग के वैर से स्पृष्ट है या (उक्त) पुरुष के वैर से स्पृष्ट है ?
[७ उ.] गौतम! जो पुरुष मृग को मारता है, वह मृग के बैर से स्पृष्ट है और जो पुरुष, पुरुष को मारता है, वह पुरुष के वैर से स्पृष्ट है।
[प्र.] भगवन्! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि यावत् वह पुरुष, पुरुष के वैर से स्पृष्ट
[उ.] हे गौतम! यह तो निश्चित है कि 'जो किया जा रहा है, वह किया हुआ' कहलाता है; जो मारा जा रहा है, वह मारा हुआ''जो जलाया जा रहा है, वह जलाया हुआ' कहलाता है और 'जो फेंका जा रहा है, वह फेंका हुआ' कहलाता है ?
(गौतम-) हाँ, भगवन! जो किया जा रहा है, वह किया हुआ कहलाता है, और यावत्-जो फेंका जा रहा है, वह फेंका हुआ कहलाता है।
(भगवान् -) इसलिए इसी कारण हे गौतम! जो मृग को मारता है, वह मृग के वैर से स्पृष्ट और जो पुरुष को मारता है, वह पुरुष के वैर से स्पृष्ट कहलाता है। यदि मरने वाला छह मास के अन्दर मरे, तो मारने वाला कायिकी आदि यावत् पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट कहलाता है और यदि मरने वाला छह मास के पश्चात् मरे तो मारने वाला पुरुष, कः की यावत् पारितापनिकी इन चार क्रियाओं से स्पृष्ट कहलातो है।
८. पुरिसे णं भंते ! पुरिसं सत्तीए समभिधंसेज्जा, सयपाणिणा वा से असिणा सीसं छिंदेज्जा, ततो णं भंते! से पुरिसे कतिकिरिए ?
- गोयमा! जावं च णं से पुरिसे तं पुरिसं सत्तीए समभिधंसेइ सयपाणिणा वा से असिणा सीसं छिंदइ तावं च णं से पुरिसे काइयाए अहिगरणि० जाव पाणातिवायकिरियाए पंचहिं किरियाहिं पुढे, आसन्नवहएण य अणवकंखणवत्तिएणं पुरिसवेरेणं पुढें।
[८ प्र.] भगवन् ! कोई पुरुष किसी पुरुष को बरछी (या भाले) से मारे अथवा अपने हाथ से तलवार द्वारा उस पुरुष का मस्तक काट डाले, तो वह पुरुष कितनी क्रिया वाला होता है ?
[८ उ.] गौतम! जब वह पुरुष उसे बरछी द्वारा मारता है, अथवा अपने हाथ से तलवार द्वारा उस पुरुष का मस्तक काटता है, तब वह पुरुष कायिकी, आधिकरणिकी यावत् प्राणातिपातकी इन पाँचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है और वह आसन्नवधक एवं दूसरे के प्राणों की परवाह न करने वाला पुरुष,