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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र वह चार क्रियाओं वाला होता है। जब वह तिनके इकट्ठे करता है, उनमें आग डालता है और जलात है, तब वह पुरुष कायिकी आदि पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। इसलिए हे गौतम! दह (पूर्वोक्त) पुरुष कदाचित् तीन क्रियाओं वाला, कदाचित् चार क्रियाओं वाला एवं कदाचित् पांचों क्रियाओं वाला कहा जाता है।
६. पुरिसे णं भंते! कच्छंदंसि वा जाव वणविदुग्गंसि वा मियवित्तीए मियसंकप्पे मियपणिहाणे मियवहाए गंता 'एए मिये' त्ति काउं अन्नयरस मियस्स वहाए उसुं निसिरइ, ततो णं भंते! से पुरिसे कतिकिरिए ?
गोयमा ! सि तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए ।
से केणट्ठेण ?
गोयमा ! जे भविए निसिरणयाए तिहिं; जे भविए निसिरणयाए वि विद्धंसणयाए वि, नो मारणयाए चउहिं; जे भविए निसिरणयाए वि विद्धंसणयाए वि मारणयाए वि तावं च णं से पुरिसे जाव पंचहिं किरियाहिं पुट्ठे । से तेणट्ठेणं गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए ।
[६ प्र.] भगवन्! मृगों से आजीविका चलाने वाला, मृगों का शिकार करने के लिए कृतसंकल्प, मृगों के शिकार में तन्मय, मृगवध के लिए कच्छ में यावत् वनविदुर्ग में जाकर 'ये मृग हैं' ऐसा सोचकर किसी एक मृग को मारने के लिए बाण फेंकता है, तो वह पुरुष कितनी क्रिया वाला होता है (अर्थात् उसे कितनी क्रिया लगती है ? )
[६ उ.] हे गौतम! वह पुरुष कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला और कदाचित् पांच क्रिया वाला होता है।
[प्र.] भगवन्! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ?
[उ.] गौतम! जब तक वह पुरुष बाण फेंकता है, परन्तु मृग को बेधता नहीं है, तथा मृग को मारता नहीं है, तब वह पुरुष तीन क्रिया वाला है। जब वह बाण फेंकता है और मृग को बेधता है, पर मृग को मारता नहीं है, तब तक वह चार क्रिया वाला है, जब वह बाण फेंकता है, मृग को बेधता है और मारता है; तब वह पुरुष पाँच क्रिया वाला कहलाता है। हे गौतम! इस कारण ऐसा कहा जाता है कि 'कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला और कदाचित् पाँच क्रिया वाला होता है।'
७. पुरिसे णं भंते! कच्छंसि वा जाव अन्नयरस्स मियस्स वहाए आयतकण्णायतं उर्सु आयामेत्ता चिट्टिज्जा, अन्ने य से पुरिसे मग्गतो आगम्म सयपाणिणा असिणा सीसं छिंदेज्जा, से य उसू ताए चेव पुव्वायामणयाए तं मियं विंधेज्जा, से णं भंते ! पुरिसे किं मियवेरेर्ण पुट्ठे ? पुरिसवेरेणं पुट्ठे !
गोतमा ! जे मियं मारेति से मियवेरेणं पुट्ठे, जे पुरिसं मारेड़ से पुरिसवेरेणं पुट्ठे । सेकेणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ जाव से पुरिसवेरेणं पुट्ठे ?
से नूणं गोयमा ! कज्जमाणे कडे, संधिज्जमाणे संधिते, निव्वतिज्जमाणे निव्वत्तिए, निसिरिज्जमाणे निसट्ठे त्ति वत्तव्वं सिया ?