Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम शतक : उद्देशक- ७]
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छोटा टुकड़ा भी देश ही कहलाएगा, लेकिन अर्द्धभाग तभी कहलाता है, जब उसके बीचों-बीच से दो हिस्से किये जाते हैं । यही देश और अर्द्ध में अन्तर है ।
जीवों की विग्रहगति- अविग्रहगति सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
७. [ १ ] जीवे णं भंते ! किं विग्गहगतिसमावन्नए ? अविग्गहगतिसमावन्नए ? गोमा ! सिय विग्गहगतिसमावन्नए, सिय अविग्गहगतिसमावन्नए ।
[२] एवं जाव' वेमाणिए ।
[७-१ प्र.] भगवन्! क्या जीव विग्रहगतिसमापन — विग्रहगति को प्राप्त होता है, अथवा अविग्रहगतिसमापन्न विग्रहगति को प्राप्त नहीं होता ?
[७-१ उ.] गौतम! कभी (वह) विग्रहगति को प्राप्त होता है, और कभी विग्रहगति को प्राप्त नहीं होता ।
[७-२] इसी प्रकार वैमानिकपर्यन्त जानना चाहिए।
८. [१] जीवा णं भंते! कि विग्गहगतिसमावन्नगा ? अविग्गहगतिसमावन्नगा ? गोयमा ! विग्गहगतिसमावन्नगा वि, अविग्गहगतिसमावन्नगा वि ।
[२] नेरइया णं भंते ! किं विग्गहगतिसमावन्नगा ? अविग्गहगतिसमावन्नगां ?
गोमा ! सव्वे वि ताव होज्जा अविग्गहगतिसमावन्नगा १, अहवा अविग्गहगतिसमावन्नगा य विग्गहगतिसमावन्नगे य २ अहवा अविग्गहगतिसमावन्नगा य विग्गहगतिसमावन्नगा य ३, एवं जीव-एगिंदियवज्जो तियभंगो ।
[८-१ प्र.] भगवन्! क्या बहुत से जीव विग्रहगति को प्राप्त होते हैं अथवा विग्रहगति को प्राप्त नहीं होते ?
[८-१ उ.] गौतम ! बहुत से जीव विग्रहगति को प्राप्त होते हैं और बहुत से जीव विग्रहगति को प्राप्त नहीं भी होते ।
[८-२ प्र.] भगवन्! क्या नैरयिक विग्रहगति को प्राप्त होते हैं या विग्रहगति को प्राप्त नहीं
होते ?
[८-२ उ.] गौतम! (१) (कभी) वे सभी विग्रहगति को प्राप्त नहीं होते, अथवा (२) (कभी) बहुत से विग्रहगति को प्राप्त नहीं होते और कोई-कोई विग्रहगति को प्राप्त होता, अथवा (३) (कभी) बहुत से जीव विग्रहगति को प्राप्त नहीं होते और बहुत से (जीव) विग्रहगति को प्राप्त होते हैं। यों जीव सामान्य और एकेन्द्रिय को छोड़कर सर्वत्र इसी प्रकार तीन-तीन भंग कहने चाहिए ।
विवेचन जीवों की विग्रहगति- अविग्रहगति-सम्बन्धित प्रश्नोत्तर प्रस्तुत दो सूत्रों द्वारा
१.
भगवतीसूत्र, अ. वृत्ति, पत्रांक ८३, ८४
२. 'जाव' शब्द यहाँ नैरयिक से लेकर वैमानिक तक चौबीस दण्डकों का सूचक है।