Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम शतक : उद्देशक - २]
हंता, समवेयणा । से केणट्टेणं ?
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गोया ! पुढविक्काइया सव्वे असण्णी असण्णिभूतं अणिदाए वेयणं वेदेंति । से तेणट्टेणं । [७-२ प्र.] भगवन्! क्या सब पृथ्वीकायिक जीव समान वेदना वाले हैं ?
[७-२ उ.] हाँ गौतम ! वे समान वेदना वाले हैं।
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[प्र.] भगवन्! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि सभी पृथ्वीकायिक जीव समान वेदना वाले हैं ?
[उ.] हे गौतम! समस्त पृथ्वीकायिक जीव असंज्ञी हैं और असंज्ञीभूत जीव वेदना को अनिर्धारित रूप से (अनिदा से) वेदते हैं। इस कारण हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि सभी पृथ्वीकायिक समान वेदना वाले हैं।
[ ३ ] पुढविक्काइया णं भंते! समकिरिया ?
हंता, समकिरिया । से केणद्वेणं ?
गोयमा ! पुढविक्काइया सव्वे माईमिच्छादिट्ठी, ताणं नेयतियाओ पंच किरिया ओ कज्जंति,
तं जहा – आरंभिया १ जाव मिच्छादंसणवत्तिया ५ । से तेणद्वेणं समकिरिया ।
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[७-३ प्र.] भगवन्! क्या सभी पृथ्वीकायिक जीव समान क्रिया वाले हैं ?
[७-३ उ.] हाँ गौतम ! वे सभी समान क्रिया वाले हैं।
[प्र.] भगवन्! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं?
[उ.] गौतम ! सभी पृथ्वीकायिक जीव मायी और मिथ्यादृष्टि हैं । इसलिए उन्हें नियम से पांचों क्रियाएँ लगती हैं। वे पांच क्रियाएँ ये हैं – आरम्भिकी यावत् मिथ्यादर्शनप्रत्यया । इस कारण से हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि सभी पृथ्वीकायिक जीव समानक्रिया वाले हैं ।
[४] समाउया, समोववन्नगा जहा नेरड्या तहा भाणियव्वा ।
[७-४] जैसे नारक जीवों में समायुष्क और समोपपन्नक आदि चार भंग कां गये हैं, वैसे ही पृथ्वीकायिक जीवों में भी कहने चाहिए ।
८. जहा पुढविक्काइया तहा जाव चउरिदिया ।
[८-१] जिस प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों के आहारादि के सम्बन्ध में निरुपण किया गया है, उसी प्रकार अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय तक के जीवों के सम्बन्ध में समझ लेना चाहिए ।
९ [ १ ] पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा नेरइया । नाणत्तं किरियासु
[९-१] पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीवों के आहारादि के सम्बन्ध में कथन भी नैरयिकों के समान समझना चाहिए; केवल क्रियाओं में भिन्नता है।