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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [५] सा भंते! किं आणुपुस्विकडा कज्जति ? अणाणुपुस्विकडा कज्जति ?
गोयमा! आणुपुस्विकडा कज्जति नो अणाणुपुस्विकडा कज्जति। जा य कडा, जा य कज्जति, जा य कग्जिस्सति सव्वा सा आणुपुस्विकडा, नो अणाणुपुस्विकड त्ति वत्तव्वं सिया।
[७-५ प्र.] भगवन् ! जो क्रिया की जाती है, वह क्या आनुपूर्वी-अनुक्रमपूर्वक की जाती है,या बिना अनुक्रम से (पूर्व-पश्चात् के बिना) की जाती है ?
[७-५ उ.] गौतम! वह अनुक्रमपूर्वक की जाती है, किन्तु बिना अनुक्रम से नहीं की जाती। जो क्रिया की गई है, या जो क्रिया की जा रही है, अथवा जो क्रिया की जाएगी, वह सब अनुक्रमपूर्वक कृत है। किन्तु बिना अनुक्रमपूर्वक कृत नहीं है, ऐसा कहना चाहिए।
८[१] अस्थि णं भंते! नेरइयाणं पाणातिवायकिरिया कज्जति ? हंता, अत्थि। [८-१ प्र.] भगवन् ! क्या नैरयिकों द्वारा प्राणातिपातक्रिया की जाती है ? [८-१ उ.] हाँ, गौतम! की जाती है। [२] सा भंते! किं पुट्ठा कज्जति? अपुट्ठा कज्जति ? जाव नियमा छदिसिं कज्जति।
[८-२ प्र.] भगवन्! नैरयिकों द्वारा जो क्रिया की जाती है, वह स्पृष्ट की जाती है या अस्पृष्ट की जाती है?
[८-२ उ.] गौतम! वह यावत् नियम से छहों दिशाओं में की जाती है। [३] सा भंते! किं कडा कजति ? अकडा कज्जति ? तं चेव जाव' नो अणाणुपुनिकड त्ति वत्तव्वं सिया। [८-३ प्र.] भगवन्! नैरयिकों द्वारा जो क्रिया की जाती है, वह क्या कृत है अथवा अकृत है ?
[८-३ उ.] गौतम! वह पहले की तरह जानना चाहिए, यावत्- वह अनुक्रमपूर्वक कृत है, अननुपूर्वक कृत नहीं; ऐसा कहना चाहिए।
९. जहा नेरइया (सु.८) तहा एगिदियवज्जा भाणितव्वा जाव वेमाणिया।
[९] नैरयिकों के समान एकेन्द्रिय को छोड़कर यावत् वैमानिकों तक सब दण्डकों में कहना चाहिए।
१. 'जाव' पद से सू.७-५ में अंकित आणुपुस्विकडा कज्जति' से लेकर'...त्ति वत्तव्वं सिया' तक का पाठ समझ
लेना चाहिए। २. 'जाव' पद से द्वीन्द्रियादि से लेकर वैमानिकपर्यन्त का पाठ समझना चाहिए।