________________
११०]
[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र लालिमायुक्त प्रकाश अवभाव कहलाता है। उज्जोएइ-उद्योतित होता है, जिससे स्थूल वस्तुएँ दिखाई देती हैं। तवेइ-तपता है- शीत को दूर करता है, उस ताप में छोटे-बड़े सभी पदार्थ स्पष्ट दिखाई देते हैं। पभासेइ-अत्यन्त तपता है; जिस ताप में छोटी से छोटी वस्तु भी दिखाई देती है।
सूर्य द्वारा क्षेत्र का अवभासादि-सूर्य जिस क्षेत्र को अवभासित आदि करता है, वह उस क्षेत्र का स्पर्श-अवगाहन करके अवभासित आदि करता है। अनन्तरावगाढ़ को अवभासितादि करता है, परम्परावगाढ़ को नहीं। वह अणु, बादर, ऊपर, नीचे, तिरछे, आदि, मध्य और अन्त सब क्षेत्र को स्वविषय में, क्रमपूर्वक, छहों दिशाओं में अवभासितादि करता है। इसलिए इसे स्पृष्ट-क्षेत्रस्पर्शी कहा जाता है। लोकान्त-अलोकान्तादिस्पर्श-प्ररूपणा
५[१] लोअंते भंते! अलोअंतं फुसति ? अलोअंते विलोअंतं फुसति ? हंता, गोयमा! लोगंते अलोगंतं फुसति, अलोगंते वि लोगंतं फुसति । ।
[५-१ प्र.] भगवन् ! क्या लोक का अन्त (किनारा) अलोक के अन्त को स्पर्श करता है ? क्या अलोक का अन्त लोक के अन्त को स्पर्श करता है ?
[५-१ उ.] हाँ, गौतम! लोक का अन्त अलोक के अन्त को स्पर्श करता है, और अलोक का अन्त लोक के अन्त को स्पर्श करता है।
E२] तं भंते! किं पुढें फुसति ? जाव नियमा छद्दिसिं फुसति।
[५-२ प्र.] भगवन्! वह जो (लोक का अन्त अलोकान्त को और अलोकान्त लोकान्त को) स्पर्श करता है, क्या वह स्पृष्ट है या अस्पृष्ट है ?
[५-२ उ.] गौतम! यावत् नियमपूर्वक छहों दिशाओं में स्पृष्ट होता है। ६.[१] दीवंते भंते! सागरंतं फुसति ? सागरंते वि दीवंतं फुसति ? हंता, जाव नियमा छद्दिसिं फुसति।
[६-१ प्र.] भगवन्! क्या द्वीप का अन्त (किनारा) समुद्र के अन्त को स्पर्श करता है ? और समुद्र का अन्त द्वीप के अन्त को स्पर्श करता है ?
[६-१ उ.] हाँ गौतम! ....यावत्-नियम से छहों दिशाओं में स्पर्श करता है। [२] एवं एतेणं अभिलावेणं उदयंते पोदंतं, छिड़ते दूसंतं, छायंते आतवंतं ? जाव नियमा छद्दिसिं फुसति।
[६-२ प्र.] भगवन्! क्या इसी प्रकार इसी अभिलाप से (इन्हीं शब्दों में) पानी का किनारा, पोत (नौका-जहाज) के किनारे को और पोत का किनारा पानी के किनारे को स्पर्श करता है ? क्या छेद का
१. भगवती सूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक ७८