Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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५०]
[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [२] पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! सव्वे समकिरिया ? गोयमा! णो इणढे समढे। से केणटेणं?
गोयमा! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया तिविहा पण्णत्ता।तं जहा-सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी। तत्थं णं जे ते सम्मद्दिट्ठी ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-अस्संजता य, संजताऽसंजता य। तत्थ णं जे ते संजताऽसंजता तेसि णं तिन्नि किरियाओ कजंति, तं जहाआरम्भिया १ पारिग्गहिया २ मायावत्तिया ३। असंजताणं चत्तारि। मिच्छादिट्ठीणं पंच। सम्मामिच्छादिट्ठीणं पंच।
[९-२ प्र.] भगवन् ! क्या सभी पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव समान क्रिया वाले हैं ? [९-२ उ.] गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। [प्र.] भगवन्! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं ?
[उ.] गौतम! पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा-सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि (मिश्रदृष्टि)। उनमें जो सम्यग्दृष्टि हैं, वे दो प्रकार के हैं, जैसे किअसंयत और संयतासंयत। उनमें जो संयतासंयत हैं, उन्हें तीन क्रियाएँ लगती हैं। वे इस प्रकारआरम्भिकी, पारिग्रहिकी और मायाप्रत्यया। उनमें जो असंयत हैं, उन्हें अप्रत्याख्यानी क्रियासहित चार क्रियाएँ लगती हैं। जो मिथ्यादृष्टि हैं तथा सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं, उन्हें पांचों क्रियाएँ लगती हैं। मनुष्य-देव विषयक समानत्व चर्चा
१०.[१]मणुस्सा जहा नेरइया (सु.५)। नाणत्तं-जे महासरीरा से आहच्च आहारेंति। जे अप्पसरीरा ते अभिक्खणं आहारेंति ४। सेसं जहा नेरइयाणं जाव वेयणा।
[१०-१] मनुष्यों का आहारादिसम्बन्धित निरूपण नैरयिकों के समान समझना चाहिए। उनमें अन्तर इतना ही है कि जो महाशरीर वाले हैं, वे बहुतर पुद्गलों का आहार करते हैं, और वे कभी-कभी आहार करते हैं, इसके विपरीत जो अल्पशरीर वाले हैं, वे अल्पतर पुद्गलों का आहार करते हैं; और बार-बार करते हैं। शेष वेदना पर्यन्त सब वर्णन नारकों के समान समझना चाहिए।
[२] मणुस्सा णं भंते! सव्वे समकिरिया ? गोयमा! णो इणढे समढे। से केणटेणं?
गोयमा! मणुस्सा तिविहा पण्णत्ता।तं जहा-सम्मद्दिट्ठी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी। तत्थ णं जे ते सम्मद्दिट्ठी ते तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-संजता अस्संजता संजतासंजता य। तत्थ णं जे ते संजता ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सरागसंजता य वीतरागसंजता य। तत्थ णं जे ते वीतरागसंजता ते णं अकिरिया। तत्थ णं जे ते सरागसंजता ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहापमत्तसंजता य अपमत्तसंजता य। तत्थ णं जे ते अप्पमत्तसंजता तेसि णं एगा मायावत्तिया