Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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१०४]
[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र एकेन्द्रियों की क्रोधोपयुक्तादि प्ररूपणापूर्वक स्थिति आदि द्वार
३०.असंखेज्जेसुणं भंते! पुढविकाइयावाससतसहसेस्सु एगमेगंसि पुढविकाइयावासंसि पुढविक्काइयाणं केवतिया ठितिठाणा पण्णत्ता ?
गोयमा! असंखेज्जा ठितिठाणा पण्णत्ता। तं जहा-जहन्निया ठिई जाव तप्पाउग्गुक्कोसिया ठिती।
[३० प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के असंख्यात लाख आवासों में से एक-एक आवास में बसने वाले पृथ्वीकायिकों के कितने स्थिति-स्थान कहे गये हैं ?
[३० उ.] गौतम! उनके असंख्येय स्थिति-स्थान-कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं- उनकी जघन्य स्थिति, एक समय अधिक जघन्य स्थिति, दो समय अधिक जघन्य स्थिति, इत्यादि यावत् उनके योग्य उत्कृष्ट स्थिति।
३१. असंखेजेसु णं भंते! पुढविक्काइयावाससतसहस्सेसु एगमेगंसि पुढविक्काइयावासंसि जहन्नठितीए वट्टमाणा पुढविक्काइया किं कोधोवउत्ता, माणोवउत्ता, मायोवउत्ता, लोभोवउत्ता?
गोयमा! कोहोवउत्ता वि माणोवउत्ता वि मायोवेउत्ता विलोभोवउत्ता वि। एवं पुढविक्काइयाणं सव्वेसु वि ठाणेसु अभंगयं, नवरं तेउलेस्साए असीति भंगा।
[३१ प्र.] भगवन्! पृथ्वीकायिक जीवों के असंख्यात लाख आवासों में से एक-एक आवास में बसने वाले और जघन्य स्थिति वाले पृथ्वीकायिक क्या क्रोधोपयुक्त हैं, मानोपयुक्त हैं, मायोपयुक्त हैं.या लोभोपयुक्त हैं ? . [३१ उ.] गौतम! वे क्रोधोपयुक्त भी हैं, मानोपयुक्त भी हैं, मायोपयुक्त भी हैं, और लोभोपयुक्त भी हैं। इस प्रकार पृथ्वीकायिकों के सब स्थानों में अभंगक हैं (पृथ्वीकायिकों की संख्या बहुत होने से उनमें एक, बहुत आदि विकल्प नहीं होते। वे सभी स्थानों में बहुत हैं।) विशेष यह है कि तेजोलेश्या में अस्सी भंग कहने चाहिए।
३२.[१] एवं आउक्काइया वि। [२] तेउक्काइय-वाउक्काइयाणं सव्वेसु वि ठाणेसु अभंगयं। [३] वणप्फतिकाइया जहा पुढविक्काइया। [३२-१] इसी प्रकार अप्काय के सम्बन्ध में भी जानना चाहिए। [३२-२] तेजस्काय और वायुकाय के सब स्थानों में अभंगक हैं।
[३२-३] वनस्पतिकायिक जीवों के सम्बन्ध में पृथ्वीकायिकों के समान समझना चाहिए। विकलेन्द्रियों के क्रोधोपयुक्तादि निरूपणपूर्वक स्थिति आदि दस द्वार
३३. बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदियाणं जेहिं ठाणेहिं नेरतियाणं असीइ भंगा तेहिं ठाणेहिं असीइं चेव। नवरं अब्भहिया सम्मत्ते, आभिणिबोहियनाणे सुयनाणे य, एएहिं असीइ भंगा;