Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[२५-१ प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में रहने वाले और यावत् मनोयोग में रहने वाले नारक जीव क्या क्रोधोपयुक्त यावत् लोभोपयुक्त हैं ?
[२५-१ उ.] गौतम ! उनके क्रोधोपयुक्त आदि २७ भंग कहने चाहिए ।
[२५-२] इसी प्रकार वचनयोगी और काययोगी के भी क्रोधोपयुक्त आदि २७ भंग कहने
१०२]
चाहिए ।
दसवाँ - उपयोगद्वार
२६. इमीसे णं जाव नेरइया किं सागारोवउत्ता, अणागारोवउत्ता ?
गोयमा ! सागारोवउत्ता वि, अणागारोवउत्ता वि ।
[२६ प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नारक जीव क्या साकारोपयोग से युक्त हैं अथवा अनाकारोपयोग से युक्त हैं ?
[२६-उ.] गौतम! वे साकारोपयोगयुक्त भी हैं और अनाकारोपयोगयुक्त भी हैं ।
२७. [ १ ] इमीसे णं जाव सागारोवओगे वट्टमाणा किं कोहोवउत्ता० ? सत्तावीसं भंगा।
[ २ ] एवं अणागारोवउत्ते वि सत्तावीसं भंगा।
[२७-१ प्र.] भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के साकारोपयोगयुक्त नारक जीव क्या क्रोधोपयुक्त हैं; यावत् लोभोपयुक्त हैं?
[२७-१ उ.] गौतम! इनमें क्रोधोपयुक्त इत्यादि २७ भंग कहने चाहिए ।
[२७-१] इसी प्रकार अनाकारोपयुक्त में भी क्रोधोपयुक्त इत्यादि सत्ताईस भंग कहने चाहिए ।
विवेचन - नारकों का क्रोधोपयुक्त इत्यादि निरूपणपूर्वक नौवाँ एवं दसवाँ योगउपयोगद्वार - प्रस्तुत चार सूत्रों (२४ से २७ तक) में नारकों में तीन योग और दो उपयोग बताकर उक्त दोनों प्रकार के नारकों में क्रोधोपयुक्त आदि पूर्वोक्त २७ भंगों का निरूपण किया गया है।
योग का अर्थ – यहाँ हठयोग आदि नहीं है, किन्तु उसका खास अर्थ है - प्रयुंजन या प्रयोग । योग का तात्पर्य है – आत्मा की शक्ति को फैलाना। वह मन, वचन और काया के माध्यम से फैलाई जाती है। इसलिए इन तीनों की प्रवृत्ति, प्रसारण या प्रयोग को योग कहा जाता है। यद्यपि केवल कार्मणकाययोग में ८० भंग पाये जाते हैं, किन्तु यहाँ सामान्य काययोग की विवक्षा से २७ भंग ही समझने चाहिए ।
उपयोग का अर्थ – जानना या देखना है । वस्तु के सामान्य (स्वरूप) को जानना अनाकारउपयोग है और विशेष धर्म को जानना साकारोपयोग है। दूसरे शब्दों में, दर्शन को अनाकारोपयोग और