Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [३] सम्मामिच्छइंसणे असीति भंगा। ___ [२१-१ प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले सम्यग्दृष्टि नारक क्या क्रोधोपयुक्त यावत् लोभोपयुक्त हैं ?
[२१-१ उ.] गौतम! इनके क्रोधोपयुक्त आदि सत्ताईस भंग कहने चाहिए। [२१-२] इसी प्रकार मिथ्यादृष्टि के भी क्रोधोपयुक्त आदि २७ भंग कहने चाहिए।
[२१-३] सम्यग्मिथ्यादृष्टि के अस्सी भंग (पूर्ववत्) कहने चाहिए। आठवाँ-ज्ञानद्वार
२२. इमीसे णं भंते! जाव किं णाणी, अण्णाणी ?
गोयमा! णाणी वि, अण्णाणी वि। तिण्णि नाणाणि नियमा, तिण्णि अण्णाणाइं भयणाए।
[२२ प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में रहने वाले नारक जीव क्या ज्ञानी हैं, या अज्ञानी हैं ?
[२२ उ.] गौतम! उनमें ज्ञानी भी हैं, और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं, उनमें नियमपूर्वक तीन ज्ञान होते हैं, और जो अज्ञानी हैं, उनमें तीन अज्ञान भजना (विकल्प) से होते हैं।
२३. (१) इमीसे णं भंते ? जाव आभिणिबोहियणाणे वट्टमाणा० ? सत्तावीसं भंगा। [२] एवं तिण्णि णाणाइं, तिण्णि य अण्णाणाई भाणियव्वाई।
[२३-१ प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में रहने वाले आभिनिबोधिक ज्ञानी (मतिज्ञानी) नारकी जीव क्या क्रोधोपयुक्त यावत् लोभोपयुक्त होते हैं ?
[२३-१ उ.] गौतम! उन आभिनिबोधिक ज्ञानवाले नारकों के क्रोधोपयुक्त आदि २७ भंग कहने चाहिए। - [२३-२] इसी प्रकार तीनों ज्ञान वाले तथा तीनों अज्ञान वाले नारकों में क्रोधोपयुक्त आदि २७ भंग कहने चाहिए।
विवेचन-नारकों का क्रोधोपयुक्तादि निरूपणपूर्वक सातवाँ-आठवाँ दृष्टिज्ञानद्वार-प्रस्तुत चार सूत्रों में नारकों में तीनों दृष्टियों तथा तीन ज्ञान एवं तीन अज्ञान की प्ररूपणा करके उनमें क्रोधोपयुक्तादि भंगों का प्रतिपादन किया गया है।
दृष्टि-जिनकी दृष्टि (दर्शन) में समभाव है, सम्यक्त्व है, वे सम्यग्दृष्टि कहलाते हैं। वस्तु के वास्तविक स्वरूप को समझना सम्यग्दर्शन है, और विपरीतस्वरूप समझना मिथ्यादर्शन है। विपरीत बुद्धि दृष्टि वाला प्राणी मिथ्यादृष्टि होता है। जो न पूरी तरह मिथ्यादृष्टि वाला है और न सम्यग्दृष्टि वाला है, वह सम्यगमिथ्यादृष्टि-मिश्रदृष्टि कहलाता है।