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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [१४ प्र.] भगवन्! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से प्रत्येक नारकावास में बसने वाले नैरयिकों के शरीरों का कौन-सा संहनन है ? ।
[१४ उ.] गौतम! उनका शरीर संहननरहित है, अर्थात् उनमें छह संहननों में से कोई भी संहनन नहीं होता। उनके शरीर में हड्डी, शिरा (नसें) और स्नायु नहीं होती। जो पुद्गल अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अशुभ अमनोज्ञ और अमनोहर हैं, वे पुद्गल नारकों के शरीर-संघातरूप में परिणत होते हैं।
१५. इमीसे णं भंते! जाव छण्हं संघयणाणं असंघयणे वट्टमाणा नेरतिया किं कोहोवउत्ता० ?
सत्तावीसं भंगा।
[१५ प्र.] भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से प्रत्येक नारकावास में रहने वाले और छह संहननों में से जिनके एक भी संहनन नहीं है, वे नैरयिक क्या क्रोधोपयुक्त हैं, मानोपयुक्त हैं, मायोपयुक्त हैं अथवा लोभोपयुक्त हैं ?
[१५ उ.] गौतम! इनके सत्ताईस भंग कहने चाहिए। पाँचवाँ–संस्थानद्वार
१६. इमीसे णं भंते! रयणप्पभा जाव सरीरया किं संठिता पण्णत्ता ?
गोयमा! दुविधा पण्णत्ता। तं जहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जे ते भवधारणिज्जा ते हुंडसंठिया पण्णत्ता। तत्थ णं उत्तरवेउव्विया ते वि हुंडसंठिया पण्णत्ता। ___ [१६ प्र.] भगवन्! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से प्रत्येक नारकावास में रहने वाले नैरयिकों के शरीर किस संस्थान वाले हैं ?
[१६ उ.] गौतम! उन नारकों का शरीर दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार हैभवधारणीय और उत्तरवैक्रिय। उनमें जो भवधारणीय शरीर वाले हैं, वे हुण्डक संस्थान वाले होते हैं, और जो शरीर उत्तरवैक्रियरूप हैं, वे भी हुण्डकसंस्थान वाले कहे गए हैं।
१७. इमीसे णं जाव हुंडसंठाणे वट्टमाणा नेरतिया किं कोहोवउत्ता० ? सत्तावीसं भंगा।
[१७ प्र.] भगवन्! इस रत्नप्रभापृथ्वी में यावत् हुण्डकसंस्थान में वर्तमान नारक क्या क्रोधोपयुक्त इत्यादि हैं?
[१७ उ.] गौतम! इनके भी क्रोधोपयुक्त आदि २७ भंग कहने चाहिए।
विवेचन-नारकों का क्रोधोपयुक्तादि निरूपणपूर्वक चतुर्थ एवं पंचम संहननसंस्थानद्वार-प्रस्तुत चार सूत्रों (१४ से १७ तक) में नारकों के संहनन एवं संस्थान के सम्बन्ध में प्ररूपण करते हुए उक्त संहननहीन एवं संस्थानयुक्त नारकों के क्रोधोपयुक्तादि भंगों की चर्चा की है।
उत्तरवैक्रिय शरीर-एक नारकी जीव दूसरे जीव को कष्ट देने के लिए जो शरीर बनाता है, वह उत्तरवैक्रिय कहलाता है। उत्तरवैक्रिय शरीर सुन्दर न बनाकर नारक हुण्डकसंस्थान वाला क्यों बनाते