Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम शतक : उद्देशक-४]
[८९ १३. पडुप्पन्ने वि एवं चेव, नवरं 'सिज्झति' भाणितव्वं। [१३] वर्तमान काल में भी इसी प्रकार जानना। विशेष यह है कि सिद्ध होते हैं, ऐसा कहना चाहिए। १४. अणागते वि एवं चेव, नवरं 'सिज्झिस्संति' भाणियव्वं । [१४] तथा भविष्यकाल में भी इसी प्रकार जानना। विशेष यह है कि सिद्ध होंगे', ऐसा कहना चाहिए।
१५. जहा छउमत्थो तहा आधोहिओ वि, तहा परमाहोहिओ वि।तिण्णि तिण्णि आलावगा भाणियव्वा।
[१५] जैसा छद्मस्थ के विषय में कहा है, वैसा ही आधोवधिक और परमाधोवधिक के विषय में जानना चाहिए और उसके तीन-तीन आलापक कहने चाहिए। केवली की मुक्ति से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर
१६. केवली णं भंते! मणूसे तीतमणंतं सासयं समयं जाव अंतं करेंसु?
हंता, सिज्झिसु जाव अंतं करेंसु। एते तिण्णि आलावगा भाणियव्वा छउमत्थस्स जहा, नवरं सिग्झिसु, सिझंति, सिज्झिस्संति।
[१६ प्र.] भगवन्! बीते हुए अनन्त शाश्वत काल में केवली मनुष्य ने यावत् सर्व-दुःखों का अन्त किया
[१६ उ.] हाँ गौतम! वह सिद्ध हुआ, यावत् उसने समस्त दुःखों का अन्त किया। यहाँ भी छद्मस्थ के समान ये तीन आलापक कहने चाहिए। विशेष यह है कि सिद्ध हुआ, सिद्ध होता है और सिद्ध होगा, इस प्रकार (त्रिकाल-सम्बन्धी) तीन आलापक कहने चाहिए।
१७. से नूणं भंते! तीतमणंतं सासयं समयं, पडुप्पन्नं वा सासयं समयं, अणागतमणंतं वा सासयं समयं जे केइ अंतकरा वा अंतिमसरीरिया वा सव्वदुक्खाणमंतं करेंसु वा करेंति वा, करिस्संति वा सव्वं ते उप्पन्ननाण-दसणधरा अरहा जिणे केवली भवित्ता तओ पच्छा सिझंति जाव अंतं करेस्संति वा ?
हंता, गोयमा! तीतमणंतं सासतं समयं जाव अंतं करेस्संति वा।
[१७ प्र.] भगवन्! बीते हुए अनन्त शाश्वत काल में, वर्तमान शाश्वत काल में और अनन्त शाश्वत भविष्य काल में जिन अन्तकरों ने अथवा चरमशरीरी पुरुषों ने समस्त दुःखां का अन्त किया है, करते हैं या करेंगे; क्या वे सब उत्पन्नज्ञान-दर्शनधारी, अर्हन्त, जिन और केवली होकर तत्पश्चात् सिद्ध, बुद्ध आदि होते हैं, यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे?
[१७ उ.] हाँ, गौतम! बीते हुए अनन्त शाश्वतकाल में... यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे।
१८. से नूणं भंते! उप्पन्ननाण-दसणधरे अरहा जिणे केवली 'अलमत्थु' त्ति वत्तव्वं सिया?
हंता गोयमा! उप्पन्ननाण-दसणधरे अरहा जिणे केवली 'अलमत्थु'त्ति वत्तव्वं सिया। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति.
॥चउत्थो उद्देसओ सम्मत्तो॥