Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [११] इसी प्रकार 'जीव' के साथ भी तीन आलापक कहने चाहिए।
विवेचन-पुदगल, स्कन्ध और जीव के विषय में त्रिकाल शाश्वत आदि प्ररूपणाप्रस्तुत पाँच सूत्रों में पुद्गल अर्थात् परमाणु, स्कन्ध और जीव के भूत, वर्तमान और भविष्य में सदैव होने की प्ररूपणा की गई है।
वर्तमानकाल को शाश्वत कहने का कारण-वर्तमान प्रतिक्षण भूतकाल में परिणत हो रहा है और भविष्य प्रतिक्षण वर्तमान बनता जा रहा है, फिर भी सामान्य रूप से, एक समय रूप में, वर्तमानकाल सदैव विद्यमान रहता है। इस दृष्टि से उसे शाश्वत कहा है।
पुद्गल का प्रासंगिक अर्थ-यहाँ पुद्गल का अर्थ 'परमाणु' किया गया है। यों तो पुद्गल ४ प्रकार के होते हैं-स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणु। किन्तु यहाँ केवल परमाणु ही विवक्षित है क्योंकि स्कन्ध के विषय में आगे अलग से प्रश्न किया गया है। छद्मस्थ मनुष्य की मुक्ति से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर
१२. छउमत्थेणं भंते!मणूसे तीतमणंतं सासतं समयं केवलेणं संजमेणं, केवलेणं, संवरेणं, केवलेणं बंभचेरवासेणं, केवलाहिं पवयणमाताहिं सिग्झिसु बुझिसु जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिसु?
गोतमा! नो इणढे समठे। से केणढेणं भंते! एवं वुच्चइ तं चेव जाव अंतं करेंसु ?
गोतमा! जे केइ अंतकरा वा अंतिमसरीरिया वा सव्वदुक्खाणमंतं करेंसु वा करेंति वा करिस्संति वा सव्वे ते उप्पन्ननाण-दसणधरा अरहा जिणे केवली भवित्ता ततो पच्छा सिझंति बुझंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंसुवा करेंति वा करिस्संति वा, से तेणढेणं गोतमा! जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेंसु।
[१२ प्र.] भगवन्! क्या बीते हुए अनन्त शाश्वत काल में छद्मस्थ मनुष्य केवल संयम से, केवल संवर से, केवल ब्रह्मचर्यवास से और केवल (अष्ट) प्रवचनमाता (के पालन) से सिद्ध हुआ है, बुद्ध हुआ है, यावत् समस्त दुःखों का अन्त करने वाला हुआ है ?
[१२ उ.] हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
[प्र.] भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि पूर्वोक्त छद्मस्थ मनुष्य....यावत् समस्त दुःखों का अन्तकर नहीं हुआ?
[उ.] गौतम! जो भी कोई मनुष्य कर्मों का अन्त करने वाले, चरमशरीरी हुए हैं, अथवा समस्त दुःखों का जिन्होंने अन्त किया है, जो अन्त करते हैं या करेंगे, वे सब उत्पन्नज्ञानदर्शनधारी (केवलज्ञानीकेवलदर्शनी), अर्हन्त, जिन और केवली होकर तत्पश्चात् सिद्ध हुए हैं, बुद्ध हुए हैं, मुक्त हुए हैं, परिनिर्वाण को प्राप्त हुए हैं, और उन्होंने समस्त दुःखों का अन्त किया है, वे ही करते हैं और करेंगे; इसी कारण से हे गौतम! ऐसा कहा है कि यावत् समस्त दुःखों का अन्त किया।