Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र असंज्ञिभूत-मिथ्यादृष्टि को स्वकृत कर्मफल के भोग का कोई ज्ञान या विचार तथा पश्चात्ताप नहीं होता, और न ही उसे मानसिक पीड़ा होती है। इस कारण असंज्ञिभूत नैरयिक अल्पवेदना का अनुभव करता है। इसी प्रकार संज्ञिभूत यानी संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव में तीव्र अशुभ परिणाम हो सकते हैं, फलतः वह सातवीं नरक तक आ सकता है। जो जीव आगे की नरकों में जाता है, उसे अधिक वेदना होती है। असंज्ञिभूत (नरक में जाने से पूर्व असंज्ञी) जीव रत्नप्रभा के तीव्रवेदनारहित स्थानों में उत्पन्न होता है, इसलिए उसे अल्पवेदना होती है। इसी प्रकार संज्ञिभूत अर्थात्-पर्याप्त को महावेदना और असंज्ञिभूत अर्थात् अपर्याप्त को अल्पवेदना होती है।
क्रिया-यहाँ कर्मबन्धन के कारण अर्थ में यह शब्द प्रयुक्त है। यद्यपि मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये पांचों कर्मबन्धन के कारण हैं, तथापि आरम्भ और परिग्रह योग के अन्तर्गत होने से आरम्भिकी, पारिग्रहिकी क्रिया भी कर्मबन्धन का कारण बनती है।
आयु और उत्पत्ति की दृष्टि से नारकों के ४ भंग-(१) समायुष्क समोपपन्नकउदाहरणार्थ-जिन जीवों ने १० हजार वर्ष की नरकायु बाँधी और वे एक साथ नरक में उत्पन्न हुए; (२) समायष्क-विषमोपपन्नक-जिन जीवों ने १० हजार वर्ष की नरकाय बाँधी. किन्त उनमें से कोई जीव नरक में पहले उत्पन्न हआ.कोई बाद में।(३)विषमायष्क समोपपन्नक-जिनकी आय समान नहीं है, किन्त नरक में एक साथ उत्पन्न हए हों,(४)विषमायष्क विषमोपपन्नक-एक जीव ने १० हजार वर्ष की नरकायु बाँधी और दूसरे ने १ सागरोपम की; किन्तु वे दोनों नरक में भिन्न-भिन्न समय में उत्पन्न हुए हों।
___ असुरकुमारों का आहार मानसिक होता है। आहार ग्रहण करने का मन होते ही इष्ट, कान्त आदि आहार के पुद्गल आहार के रूप में परिणत हो जाते हैं।
असुरकुमारों का आहार और श्वासोच्छ्वास-पूर्वसूत्र में असुरकुमारों का आहार एक अहोरात्र के अन्तर से और श्वासोच्छ्वास सात स्तोक में लेने का बताया गया था, किन्तु इस सूत्र में बारबार आहार और श्वासोच्दवास लेने का कथन है, यह पूर्वापरविरोध नहीं अपितु सापेक्ष कथन है। जैसे एक असुरकुमार एक दिन के अन्तर से आहार करता है, और दूसरा असुरकुमार देव सातिरेक (साधिक) एक हजार वर्ष में एक बार आहार करता है। अतः सातिरेक एक हजार वर्ष में एक बार आहार करने वाले की अपेक्षा एक दिन के अन्तर से आहार करने वाला बार-बार आहार करता है, ऐसा कहा जाता है। यही बात श्वासोच्छ्वास के सम्बन्ध में समझ लेनी चाहिए। सातिरेक एक पक्ष में श्वासोच्छ्वास लेने वाले असुरकुमार की अपेक्षा सात स्तोक में श्वासोच्छ्वास लेने वाला असुरकुमार बार-बार श्वासोच्छ्वास लेता है, ऐसा कहा जाता है।
असुरकुमार के कर्म, वर्ण और लेश्या का कथन : नारकों से विपरीत-इस विपरीतता का कारण यह है कि पूर्वोपपन्नक असुरकुमारों का चित्त अतिकन्दर्प और दर्प से युक्त होने से वे नारकों को बहुत त्रास देते हैं। त्रास सहन करने से नारकों के तो कर्मनिर्जरा होती है, किन्तु असुरकुमारों के नये कर्मों का बन्ध होता है। वे अपनी क्रूरभावना एवं विकारादि के कारण अपनी अशुद्धता बढ़ाते हैं। उनका