Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रे
पुष्पम्, तद्रूपं सूक्ष्मं - पुष्पसूक्ष्ममिति ॥ ५ ॥ अण्डक्ष्मम् - अण्डम् = मक्षिकापिपीलिका - गृहगोधिका - कृकलासाधण्डकं, तदेव सूक्ष्मम् इति ॥ ६ ॥ लयनसू. क्ष्पम्-लयनं=पत्त्वानामाश्रयः - कीटनगरादि यत्र की टिकाः सूक्ष्माचान्ये जीवास्तिष्ठन्ति तदिति, तदेव सूक्ष्मम् लयनसूक्ष्मम् । कीटिकानगरादि हि पृथिव्यादिवत्प्रतिभासमानं जीवत्वेन दुर्लक्ष्यं भक्तीति बोध्यम् ॥ ७ ॥ तथा स्नेहसू क्ष्मम्-स्नेहः = अवश्याय-हिम महिकादिरूपः, तद्रूपं सूक्ष्मं स्नेहसूक्ष्मम् इति ॥८॥ रूप होता है और यह जब नवीन रूपमें उत्पन्न होता हैं तब इसका वर्ण भूमिके वर्ण जैसा होता है, अतः उस समय यह भूमि से पृथक् प्रतीतिमें नहीं आता है-पुष्प रूप जो सूक्ष्म है वह पुष्पसूक्ष्म है ऐसा यह पुष्पसूक्ष्म उदुम्बर आदिके पुष्प रूप होता है अण्ड रूप जो सूक्ष्म है वह अण्ड सूक्ष्म है ऐसा यह अण्डसूक्ष्म-मक्षिका, पिपीलिका, गृह गोधिका, कृकलास गिरगिट आदि के अण्डे रूप होता है सच्चोंके आश्र
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भूत जो कीट नगर है उसका नाम लपन है इस लयनमें मक्ष्म कीटिकाएँ और सूक्ष्म जीव रहते हैं अतः इस लयन रूप सूक्ष्म है कीटि कानगरादि पृथिवी आदिको तरह प्रतीत होता है और यह सजीय है, इस रूपसे बडी कठिनाई से प्रतीति कोटिमें आता है स्नेह रूप जो सूक्ष्म है वह स्नेहसूक्ष्म है अवश्याय बर्फ, हिम एवं महिका आदि ઉત્પન્ન થાય છે, ત્યારે તેનેા વધુ ભૂમિનાવ જેવા હાય છે, તે કારણે તે ભૂમિથી અલગ કેાઈ વસ્તુ રૂપે દેખતાં નથી.
(૫) પુષ્પસૂક્ષ્મ-પુષ્પરૂપ જે સૂક્ષ્મ છે તેને પુષ્પસૂક્ષ્મ કહે છે. ઉર્દુમ્બર (उभर31) महिना ड्रेसने पुष्पसूक्ष्म व उडी शाय
(६) खंड (डi ) ३५ ने सूक्ष्म छे तेने असूक्ष्म मुडे हे. ते भाजी, डीडी, गरोजी, अंथीड महिनां डाइय होय छे.
લયનસૂક્ષ્મ-કીડિયારાંને લયન છે. તેથી તેને લયનસૂમ કહે છે. छे, भने “सा सलव छे" मे समतां धी --તે સજીવ છે એવી ખાતરી સરલતાથી થતી નથી.
કહે છે. તેમાં કીડી આદિ સૂક્ષ્મ જીવે રહે આ કીડિયારાં આદિ પૃથ્વીના જેવાં જ લાગે मुली जडी थाय छे.
સ્નેહસૂક્ષ્મ-સ્નેહરૂપ જે સૂક્ષ્મ છે તેને સ્નેહસૂક્ષ્મ કહે છે ખરž, હિમ, घुमस, आण, आदि ३५ ते स्नेहसूक्ष्म होय छे,
શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૫