Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
५५६
स्थानाङ्गसूत्रे
अनन्तरोक्तदानात् शुभाशुभगतिर्भवतीति सामान्यतो गतिं निरूपयतिमूलम् - दसविहा गई पण्णत्ता, तं जहा - निरयगई १ निरय विग्गहगई २, तिरियगई ३ तिरियविग्गहगई ४ एवं जाव सिद्धिगई ९ सिद्धिविग्गहगई १० ॥ सू० ५० ॥
छाया - दशविधा गतिः प्रज्ञप्ता, तद्यथा - निरयगतिः १ निरयविग्रहगतिः २ तिर्यग्गतिः ३ तिर्यग्विग्रहगतिः ४ एवं यावत् सिद्धिगतिः ९ सिद्धिविग्रहगतिः १० ।। सू० ५० ॥
टीका - ' दसविहा गई ' इत्यादि -
गतिः गमनं पर्यायविशेषो वा, सा दशविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा - 'निरयगति'इसने मेरे सैकडों उपकार किये हैं तथा हजारोंकी सहायता भी इसने मुझे पहुँचाई है अतः में भी प्रत्युप्रकार के निमित्त इसे कुछ देता हूँ || सूत्र ४९ ॥
इस ४९ वें सूत्रमें जो दान कहा गया है उससे जीवकी शुभ अशुभ गति होती है अर्थात् धर्म दानसे शुभ गति होती है और अधर्म दान अशुभ गति होती है । अतः अब सूत्रकार सामान्यतः गतिका निरुपण करते हैं - " दसविहा गई पण्णत्ता " इत्यादि ॥ सूत्र ५० ॥
टीकार्य - गति दश प्रकारकी कही गई है जैसे-नरक गति १, नरक विग्रह गति २ तिर्यग्गति ३ तिर्यग् विग्रह गति ४ यावत् सिद्धि गति ९ और सिद्धि विग्रह गति १० ।
गमन अथवा पर्याय विशेषका नाम गति है, यह गति जो नरक તેને કઈક આપવું જોઈએ. આ પ્રકારની ભાવનાથી જે દાન અપાય છે તેને કૃતદાન કહેવામાં આવે છે. II સૂત્ર ૪૯ ॥
ઉપરના સૂત્રમાં દાનની વાત કરવામાં આવી છે. તેનાથી જીવની શુભઅશુભ ગતિ થાય છે. અને અધમ દાનથી જીવની અશુભગતિ થાય છે. તેથી હવે સૂત્રકાર ગતિના પ્રકારનુ નિરૂપણ કરે છે
इत्यादि - (सू. ५०)
दविहा गई पण्णत्ता टीडार्थ-गतिना नीचे प्रमाणे इस प्रहार ह्या छे - (१) नरम्गति, (२) न२४विथड ગતિ, (૩) તિયગતિ, (૪) તિય`ગ્વિગ્રઢગતિ, એજ પ્રમાણે મનુષ્ય ગતિથી લઈને (2) सिद्धिगति भने (१०) सिद्धिविश्रगति पर्यन्तना प्रहारे। समभवा.
શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૫
"
""