Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 692
________________ सुघा टीका स्था०१० सू० ७७ जीवमेदनिरूपणम् माह-' एवं जाव अपढमसमयपंचिदिया' इति ॥१॥ तथा-सर्वजीवा:-सर्वेच ते जीवाश्चेति, संसारिणः सिद्धाश्चेत्यर्थः । ते जीवा दविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथापृथिवीकायिका इत्यादि । व्याख्या स्पष्टा । प्रथमेन यावत्पदेन-'अप्कायिकाः २ तेजस्कायिकाः ३ वायुकायिकाः' इति पदत्रयं ग्राह्यम् । द्वितीयेन यावत्पदेन तु-'श्रीन्द्रियाः ७ चतुरिन्द्रियाः ८ इति पदद्वयं ग्राह्यम् । ' अनिन्द्रियास्तु-सिद्धाः, अपर्याप्ताः, तथा इन्द्रियोपयोगवर्जितत्वात्केवलिन इति ॥२॥ अथया-सर्वजीयाः दशविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-प्रथमसमयनैरयिकाः-नैरयिकत्वस्य प्रथमे समये हुआ है यही बात" एवं जाच अपढमसमयपंचिदिया “इस सूत्र पाठ द्वारा प्रकटकी गई है १० तथा समस्त जीव संसारी एवं सिद्ध जीव-दश प्रकार के कहे गये हैं-जैसे-पृथिवीकाधिक १ यावत् वनस्पतिकायिक ५ द्वीन्द्रिय ६, यावत् पश्चेन्द्रिय ९ और अनिन्द्रिय १० (२) अथवा-सर्व जीव दश प्रकार के कहे गये हैं-प्रथमसमयनैरयिक १ अप्रथम समय नैरयिक २ यावत् अप्रथम समय देव ८ प्रथम समय सिद्ध ९ और अप्रथम समय सिद्ध १० यहां द्वितीय सूत्र में प्रथम यावत् पद से "अप्कायिक ५ तेजस्काधिक ३ वायुकाधिक ३" इन तीन पदोंका ग्रहण हुआ है. तथा-द्वितीय यावत्पद से- तेइन्द्रिय और चौइन्द्रिय "इन दो जीवोंका ग्रहण हुआ है अनिन्द्रिय पद से सिद्ध और अपर्याप्त जीव तथा इन्द्रियउपयोगवर्जित होने से केवली गृहीत हुए हैं। नैरयिक पर्याय के प्रथम समय में वर्तमान जीव प्रथम समय नैरयिक कहे गये हैं । तथा-नैरयिक " एव' जाव अपदमसमयपचिंदिया" 21 सूत्रमा २० प्र४८ यतi से हो ઉપર પ્રકટ કરવામાં આવ્યા છે. ૧ સમસ્ત જીવના (સંસારી જીવોના અને સિદ્ધ જીના) નીચે પ્રમાણે ૧૦ પ્રકાર કહ્યા છે–પૃથ્વીકાયિકથી વનસ્પતિકાયિક પર્યરતના પાંચ પ્રકારે (૬) હીન્દ્રિય. (७) श्रीन्द्रिय, (८) यतुरिन्द्रिय, (८) ५येन्द्रिय भने (१०) भनिन्द्रिय. ॥२॥ અથવા સમસ્ત જીવોના નીચે પ્રમાણે દસ પ્રકાર કહ્યા છે. પ્રથમ સમય सिद्ध भने (१०) मप्रभयमसमयसिद्ध. 131 win मा “ यावत् (पय-त)" ५६ वा'म५४॥४ि, ४२॥यिs વાયુકાયિક”, આ ત્રણ પદોને પ્રહણ કરવામાં આવ્યા છે. બીજા ત્રણમાં “અનિન્દ્રિય પદ દ્વારા સિદ્ધ, અપર્યાપ્ત છે તથા ઈન્દ્રિપયોગવતિ હોવાને કારણે કેવલીને ગ્રહણ કરવામાં આવેલ છે. નરયિક શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર :૦૫

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